सूक्तिस्तबकः
पाठ परिचय (Introduction of Lesson)
इस पाठ में संस्कृत साहित्य की कुछ सूक्तियों का संकलन है। 'सूक्ति' शब्द ' सु उपसर्ग तथा 'उक्ति' शब्द से बना है। सु + उक्ति - 'सूक्ति' का अर्थ है-अच्छा वचन। अत्यल्प शब्दों में जीवन के बहुमूल्य तथ्यों को सुंदर ढंग से कहने के लिए संस्कृत साहित्य की सूक्तियाँ प्रसिदूध हैं। यथा बालक से भी हितकर बात ग्रहण कर लेनी चाहिए, पुस्तक में पढ़ी बात जीवन में अपनानी चाहिए, मधुर वचन सबको खुश कर देते हैं, इत्यादि अच्छी बातें इन सूक्तियों में निहित हें।(क) उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथे: ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ||1||
सरलार्थ- बच्चे अर्थात् अल्पबुद्धिवाले/मूर्ख से भी जो बात उचित है वह सीख लेनी चाहिए। ऐसा बुद्धिमानों दवारा कहा गया है। क्या सूर्य की अनुपस्थिति में दीपक द्वारा प्रकाश नहीं किया जाता? (दीपक का प्रकाश नहीं किया जाता)।
सरलार्थ-मेहनत से ही कार्य सफल होते हैं न कि मन की इच्छा से न ही सोते हुए शेर के मुह मे हिरण परवेश करता है
भाव- अच्छी सीख, चाहे मूर्ख से भी मिले, तो भी ले लेनी चाहिए।
(ख) पुस्तके पठित: पाठ: जीवने नैव साधित:।
कि भवेत् तेन पाठेन जीवने यो न सार्थक: ||2||
सरलार्थ- (यदि) पुस्तक में पढ़ा गया पाठ जीवन में उपयोग में नहीं लाया गया तो जो (पाठ) जीवन में सार्थक नहीं उस पाठ से क्या लाभ?
भाव : पुस्तक में पढ़ी हुई बातों को जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए।
(ग) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवा:।
तस्मातू प्रियं हि वकक्तव्यं वचने का दरिद्रता ||3||
सरलार्थ- सब मनुष्य प्रिय वचन कहे जाने पर प्रसन्न हो जाते हैं। इस कारण मधुर वचन ही बोलने चाहिए। वाणी के उपयोग में कंजूसी क्यों की जाए। अर्थात् उदार होकर अधिकाधिक मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए।
भाव- मीठे बोल सबको प्रसन्न रखने का एकमात्र सरल साधन है।
(घ) गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि।
अगच्छन् वैनतेयो पि पदमेकं न गच्छति ||4||
सरलार्थ- चलती हुई चींटी तो सैंकड़ों योजन को दूरी लाँघ जाती है किंतु न चलता हुआ गरुड़ भी एक कदम भी नहीं जाता अर्थात् आगे नहीं बढ़ता।
भाव- प्रयास करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं अन्यथा नहीं।
(ङ) काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण: को भेद: पिककाकयो:।
वसन्तसमये प्राप्त काक: काक: पिक: पिक: ||5||
सरलार्थ- कौआ काला होता है, कोयल भी काली होती है, कौए और कोयल में क्या अंतर है? वसंतकाल आने पर कौवा कौगा है और कोयल कोयल है। (यह बात स्पष्ट हो जाती है।)
भाव: वाहय आकार के आधार पर आंतरिक गुणों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता, किंतु समय आने पर आंतरिक गुण भी प्रकट हो जाते हें।
S.no | Chapter |
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1 | शब्दपरिचयः I |
2 | शब्दपरिचयः II |
3 | शब्दपरिचयः III |
4 | विद्यालयः |
5 | वृक्षः |
6 | समुद्रतट |
7 | बकस्य प्रतीकारः |
8 | सूक्तिस्तबकः |
9 | क्रीडास्पर्धा |
10 | कृषिका कर्मवीराः |
11 | पुष्पोत्सवः |
12 | दशमः त्वम् असि |
13 | विमानयानं रचयाम् |
14 | अहह आः च |
15 | मातुलचन्द्र |
Tum kay ha
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ReplyDeleteप्रथम सूक्ति का अर्थ बदलने की आवश्यकता है। शब्दार्थ भी साथ में दें और बेहतर हो सकता है। वैसे बहुत अच्छा प्रयास है आपका
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ReplyDeleteThank you
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