बकस्य प्रतीकारः
पाठ का परिचय (Introduction of the lesson)
इस पाठ में अव्यय पदों का प्रयोग आया है। अव्यय वे होते हैं जिनमें लिंग, पुरुष, वचन, काल आदि के कारण कोई रूपांतर नहीं आता। वे अपने मूल रूप में प्रयुक्त होते हैं। यथा-(i) सः अपि गच्छति। (ii) अहम् अपि गमिष्यामि। (iii) ते अपि गमिष्यन्ति।
इन वाक्यों में 'अपि' में कोई परिवर्तन नहीं आया है। संस्कृत में ऐसे कई अव्यय हें। यथा-एव (ही), च (और), तत्र (वहाँ), अत्र (यहाँ), कुत्र (कहाँ) आदि। पाठ में लङ्लकार (भूतकाल) के क्रियापद भी आए हैं। यथा- अवदत् (बोला) अयच्छत् (दिया) आदि।
(क) एकस्मिन् वने शुगाल: बक: च निवसत: स्म। तयो: मित्रता आसीत। एकदा प्रात: शृगाल: बकम् अवदत्- “मित्र! श्वः त्वं मया सह भोजनं कुरु।” शुगालस्य निमन्त्रणेन बक: प्रसन्न: अभवत्।
सरलार्थ - एक वन में एक सियार और एक बगुला रहते थे। उन दोनों में मित्रता (दोस्ती) थी। एक दिन सवेरे सियार ने बगुले को कहा-“मित्र! कल तुम मेरे साथ खाना खाओ।” सियार के निमंत्रण से बगुला खुश हुआ।
English Translation : There lived a jackal and a crane in a forest. There was friendship between the two of them. One morning the jackal said to the crane, ‘Friend! tomorrow you have dinner with me.’ The crane was happy with the jackal’s invitation.
(शब्द)Word | (अर्थ)Meaning |
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एकस्मिन् वने | एक वन में (in a forest) |
शृगाल | गीदङ (jackal) |
बकः च | और बगुला (and a crane) |
निवसतः स्म | रहते थे Lived (dual) |
तयोः | उन दोनों में (between them) |
आसीत् | था/थी (was) |
एकवा | एक बार (once) |
श्वः | कल (tomorrow) |
मया सह | मेरे साथ (with me) |
भोजनं कुरु | भोजन करो (have dinner/meals) |
निमंत्रणेन | निमंत्रणेन से with (his) invitation |
अभवत् | हुआ (because/was) |
(ख) अग्रिमे दिने स: भोजनाय शुगालस्य निवासम् अगच्छत्। कुटिलस्वभाव: शृगाल: स्थाल्यां बकाय क्षीरोदनम् अयच्छत्। बकम् अवदत् च-“मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादाव:।” भोजनकाले बकस्य चञ्चु: स्थालीत: भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्। अत: बक: केवल क्षीरोदनम् अपश्यत्। शृगाल: तु सर्व क्षीरोदनम् अभक्षयत्।
सरलार्थ -
अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के निवास - स्थान पर गया । कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले को खीर दी और बगुले से कहा - "मित्र , इस बर्तन में हम दोनों अब साथ ही खाते हैं" भोजन के समय में बगुले की चोंच थाली से भोजन ग्रहण करने में समर्थ नहीं थी । अतः बगुला केवल खीर देखता रहा । सियार ने तो सारी खीर खा ली ।
(ग) शुगालेन वज्चित: बक: अचिन्तयत्-“यथा अनेन मया सह व्यवहार: कृत: तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामि” एवं चिन्तयित्वा स: शृगालम् अवदत्-“मित्र! त्वम् अपि श्व: सायं मया सह भोजनं करिष्यसि ”। बकस्य निमन्त्रणेन शृगाल: प्रसन्न: अभवत्।
सरलार्थ - सियार के द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा , "जिस प्रकार इसने मेरे साथ बर्ताव किया है , उसी प्रकार मैं भी उसके साथ बर्ताव करुँगा ।" बगुले के निमंत्रण से सियार खुश हो गया ।
(घ) यदा शृगाल: सायं बकस्य निवास भोजनाय अगच्छत्, तदा बक: सङ्कीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत्, शृगालं च अवदतू-“मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहेव भोजन कुर्व:”। बक: कलशात् चज्च्वा क्षीरोदनम् अखादतू। परन्तु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्। अतः बक: सर्व क्षीरोदनम् अखादत्। शृगाल: च केवलम् ईर्ष्यया अपश्यत्।
सरलार्थ -जब सियार शाम को बगुले के निवास स्थान पर भोजन के लिए गया , तब बगुले ने छोटे मुख वाले कलश (सुराही) में खीर डाली (दी) और सियार से कहा - "दोस्त , हम दोनों इसी बर्तन में साथ ही भोजन करते हैं " बगुले ने कलश से चोंच द्वारा खीर खाई । परंतु सियार का मुँह कलश में नहीं जा सका । इसलिए बगुला सारी खीर खा गया । सियार केवल ईर्ष्या से देखता रहा ।
(ङ) शृगाल: बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बकः अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोतु। उक्तमपि - आत्मदुर्व्यवहारस्थ फलं भवति दुःखदम्। तस्मात् सद्व्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा॥
सरलार्थ - सियार ने बगुले के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के साथ वैसा ही व्यवहार करके बदल लिया ।
कहा भी गया है - अपने बुरे व्यवहार का परिणाम दुखद ही होता है; इस कारण सुख चाहने वाले मानव को चाहिए कि वह सदा अच्छा व्यवहार करो ।
S.no | Chapter |
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1 | शब्दपरिचयः I |
2 | शब्दपरिचयः II |
3 | शब्दपरिचयः III |
4 | विद्यालयः |
5 | वृक्षः |
6 | समुद्रतट |
7 | बकस्य प्रतीकारः |
8 | सूक्तिस्तबकः |
9 | क्रीडास्पर्धा |
10 | कृषिका कर्मवीराः |
11 | पुष्पोत्सवः |
12 | दशमः त्वम् असि |
13 | विमानयानं रचयाम् |
14 | अहह आः च |
15 | मातुलचन्द्र |
Very nice 👍
ReplyDeleteNice sir💐💐👌💐
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ReplyDeleteHi Naman very nice
ReplyDeleteNice👍👍👍👍👍👍
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