अहह आः च
पाठ का परिचय (Introduction of Lesson)
प्रस्तुत पाठ में एक कथा है। इसमें यह बताया गया है कि एक सरल स्वभाव वाला परिश्रमी कर्मचारी एक वृद्धा के द्वारा दिए हुए विचित्र उपाय से अपने चतुर मालिक की अद्भुत शर्त पूरी कर उससे अवकाश और वेतन का पूरा पैसा पाने में सफल हो जाता है।इस कथा दूवारा यह शिक्षा दी गई है कि परिश्रम और लगन से कठिन कार्य ही नहीं अपितु असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
(क) अजीज: सरल: परिश्रमी च आसीत्। स: स्वामिन: एवं सेवायां लीन: आसीत। एकदा स: गृहं गन्तुम् अवकाशं वाञ्छति। स्वामी चतुर: आसीत्। सः चिन्तयति-' अजीज: इव न को पि अन्य: कार्यकुशल:। एष अवकाशस्य अपि वेतनं ग्रहीष्यति।' एवं चिन्तयित्वा स्वामी कथयति-' अहं तुभ्यम् अवकाशस्य वेतनस्य च सर्व धनं दास्यामि।' परम् एतदर्थ त्वं वस्तुद्रयम् आनय-' अहह!!' 'आ:!' च इति।
सरलार्थ- अजीज सरल स्वभाव वाला और मेहनती था। वह स्वामी की सेवा में ही लगा रहता था। एक बार वह घर जाने के लिए छुट्टी चाहता था। स्वामी (मालिक) चालाक था। वह सोचता है अजीज जैसा कोई भी दूसरा कार्य कुशल नहीं है। यह छुट्टी का भी वेतन लेगा।” यह सोचकर मालिक कहता है-“ मैं तुम्हें छुट्टी और वेतन का सारा पैसा दूँगा।” परंतु तुम इसके लिए दो वस्तुएं लाओ-"अहह!” और "आ:" बस यह।
(ख) एतत् श्रुत्वा अजीज: वस्तुद्रयम् आनेतु निर्गच्छति। सः इतस्तत: परिभ्रमति।जनान् पृच्छति। आकाशं पश्यति। धरां प्रार्थथति। परं सफलतां नैव प्राप्नोति। चिन्तयति, परिश्रमस्य धनं सः नेव प्राप्स्यति। कुत्रचित् एका वृद्धा मिलति। सः तां सर्वा व्यथां श्रावयति। सा विचारयति-' स्वामी अजीजाय धनं दातु न इच्छति। सा तं कथयति-'अहं तुभ्यं वस्तुद्वयं ददामि।' परं द्वयम् एवं बहुमूल्यकं वर्तते। प्रसन्न: स: दे स्वामिन: समीपे आगच्छति।
सरलार्थ- यह सुनकर अजीज दोनों वस्तुएँ लाने के लिए निकलता है। वह इधर-उधर घूमता है। लोगों से पूछता है। आकाश को देखता है। पृथ्वी से प्रार्थना करता है। किंतु सफलता प्राप्त नहीं करता सोचता है, परिश्रम का धन वह नहीं पा सकेगा। कहीं पर एक बुढ़िया मिलती है। वह उसे सारी व्यथा सुनाता है। वह सोचती है-“स्वामी अजीज को धन नहीं देना चाहता।” वह उसे कहती है-“ मैं तुम्हें दो बस्तुएँ देती हूँ। किंतु दोनों ही कौमती (बहुमूल्य) हैं।” प्रसन्न (होकर) बह मालिक के पास जाता है।
(ग) अजीजं दृष्ट्वा स्वामी चकित: भवति। स्वामी शनै: शनै: पेटिकाम् उद्घाटयति। पेटिकायां लघुपात्रद्वयम् आसीत। प्रथमं स: एकं लघुपात्रम् उद्घाटयति। सहसा एका मधुमक्षिका निर्गच्छति। तस्य च हस्तं दशति। स्वामी उच्चे: वदति-' अहह!। द्वितीयं लघुपात्रम् उद्घाटयति एका अन्या मक्षिका निर्गच्छति। स: ललाटे दशति। पीडित: स: अत्युच्चे: चीत्करोति-' आ:' इति अजीज: सफल: आसीत्। स्वामी तस्मै अवकाशस्य वेतनस्य च पूर्ण धनं ददाति।
सरलार्थ- अजीज को देखकर स्वामी चकित होता है। स्वामी धीरे-धीरे पेटी खोलता है। पेटी में दो छोटे पात्र (बरतन) थे। पहले वह एक छोटा पात्र खोलता है। सहसा एक मधुमक्खी निकलती है और उसके हाथ को डसती है। मालिक ज़ोर से बोल उठता है-अहह (अरे!)। दूसरा छोटा पात्र खोलता हैं। एक दूसरी मक्खी निकलती है। वह मस्तक पर डसती है। व्यथित (होकर) वह बहुत ज़ोर से चिल्लाता है- आ:' ऐसा। अजीज सफल हुंआ। स्वामी उसे (उसके लिए) अवकाश और वेतन के पूरे पैसे देता है।
S.no | Chapter |
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1 | शब्दपरिचयः I |
2 | शब्दपरिचयः II |
3 | शब्दपरिचयः III |
4 | विद्यालयः |
5 | वृक्षः |
6 | समुद्रतट |
7 | बकस्य प्रतीकारः |
8 | सूक्तिस्तबकः |
9 | क्रीडास्पर्धा |
10 | कृषिका कर्मवीराः |
11 | पुष्पोत्सवः |
12 | दशमः त्वम् असि |
13 | विमानयानं रचयाम् |
14 | अहह आः च |
15 | मातुलचन्द्र |
बहुत सुंदर है यह तो
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ReplyDeleteThank you very much^^
ReplyDeletePurple you💜❣️