Sanskrit solution chapter 4 हास्यबालकविसम्मेलनम् Class 7 translated in hindi

हास्यबालकविसम्मेलनम् (हास्य बालकवि सम्मेलन)


(क) (विविध-वेशभूषाधारिण: चत्वार बालकव: मञचस्य उपरि उपविष्टा: सन्ति । अध: श्रोतार: हास्यकविताश्रवणाय उत्सुका: सन्ति कोलाहलं च कुर्वन्ति)
सरलार्थ - (अनेक प्रकार की वेशभूषा को धारण किए हुए चार बाल कवि मंच पर बैठे हुए हैं । नीचे श्रोता जन हास्य कविताएँ सुनने के लिए उत्सुक हैं तथा वे शोर कर रहे हैं ।)


(ख) सञ्चालक: - अलं कोलाहलेन । अध परं हर्षस्य अवसर: यत् अस्मिन् कविसम्मेलने कालयापकाश्च भारतस्य हास्यकविधुरन्धरा: समागता: सन्ति । एहि , करतलध्वनिना वयम् एतेषां स्वागतं कुर्म: ।
सरलार्थ - सञ्चालक: -  शोर मत करो । आज अधिक खुशी का अवसर है कि इस कवि सम्मेलन में काव्य का नाश करने वाले भारत वर्ष के श्रेष्ठ हास्य कवि आए हैं । आइए , हम तालियों के द्वारा इनका स्वागत करें ।


(ग) गजाधर: - सर्वेभ्यो रसिकेभ्यो नमो नम: । प्रथमं तावद् अहम् आधुनिकं वैधम् उद्दिश्य स्वकीयं काव्यं श्रावयामि-
वैधराज! नमस्तुभ्यं यमराजसहोदर ।
यमस्तु हरति प्राणान् वैघ: प्राणान् धनानि च ।।
(सर्वे उच्चै: हसन्ति)
अन्वय - वैधराज ! यमराज सहादर ! तुभ्यं नम: । यम: तु ( केवलम् ) प्राणान् हरति । वैध: प्राणान् धनानि च ( हरति ) ।
सरलार्थ - सभी नीरस जनों को नमस्कार । तब तक पहले मैं आधुनिक वैध के विषस में अपनी कविता सुनाता हूँ ।
हे वैधराज हे यमराज के सगे भाई ! तुझे ( मेरा ) नमस्कार है ।
यमराज तो केवल प्राणों का हरण करता है ।
( सभी जोर से हसते हैं ) ।


(घ) कालान्तक: - अरे! वैधास्तु सर्वत्र परन्तु न ते मादृशा: कुशला: जनसंख्यानिवारणे । ममापि काव्यम् इदं श्रृण्वन्त: -
चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा वैघो विस्मयमागत: ।
नाहं गतो न मे भ्राता कस्येदं हस्तलाघवम् ।।
(सर्वे पुन: हसन्ति)
अन्वय - वैध: चिंता प्रज्वलितां दृष्ट्वा विस्मयम् आगत: । न अहं गत: , न मे भ्राता ( गत: ) । इदं कस्य हस्तलाघवम् ( अस्ति ) ?
सरलार्थ - कालान्तक: - अरे! वैध तो सब जगह हैं , परन्तु जनसंख्या को कम करने में मेरे जैसे कुशल नहीं हैं । आप मेरी यह कविता भी सुनिए -
(कोई) वैध जलती हुई चिता को देखकर आश्चर्य को प्रप्त हुआ । (वह सोचने लगा) न तो मैं वहाँ पर गया और न मेरा कोई भाई (यमराज) । फिर यह किसके हाथों की कला है ?
(सभी फिर हसते है  ।)


(ङ) तुन्दिल: - (तुन्दस्य उपरि हस्तम् आवर्तयन् ) तुन्दिलो हं भो: । ममापि इदं काव्य श्रूयताम्, जीवने धार्यतां च -
परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे! मा शरीरे दयां कुरू ।
परान्नं दुर्लभ लोके शरीराणि पुन: पुन: ।।
(सर्वे पुन: अट्टहासं कुर्वन्ति )
अन्वय - दुर्बुद्धे ! परान्नं प्राप्य शरीर पर दयां मा कुरु । (यतो हि) लोके परान्नं दुर्लभम् (अस्ति) , शरीराणि (तु) पुनः पुनः (भवन्ति) ।
सरलार्थ - तुन्दिल- (पेट पर हाथ फेरते हुए) मैं पेटू हूँ । अरे ! मेरी भी यह कविता सुनाए और जीवन में अपनाइए (धारण करे)-
हे मूर्ख ! पराए अन्न को प्रापत करके शरीर पर दया मत कर । (क्यो कि) (इस) संसार मे पराया अन्न दुर्लभ है तथा (ये) शरीर तो बार-बार होते रहते हैं ।
(सभी पुनः जोर से हँसते हैं ।)


(च) चार्वाक: - आम् , आम । शरीरस्य पोषणं सर्वथा उचितमेव । यदि धनं नास्ति , तदा ऋणं कृत्वापि पौष्टिक: पदार्थ: एव भोक्तव्य: । तथा कथयति चार्वाककवि :-
यावज्जीवेत् सुखं जीवेद् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
श्रोतार: - तर्हि ऋणस्य प्रत्यर्पणं कथम् ?
चार्वाक: - श्रूयतां मम अवशिष्टं काव्यम् -
घृतं पीत्वा श्रमं कृत्वा ऋणं प्रत्यर्पयेत् जन: ।।

सरलार्थ - चार्वाक - हाँ , हाँ । शरीर का पोषण सभी प्राकार से उचित ही है । यदि धन नहीं है तो ऋण लेकर भी पौष्टिक पदार्थों का भोग करना ही चाहिए । और चार्वाक कवि कहते हैं -
जब तक जीए , सुख से जीए (चाहे) ऋण (कर्ज) लेकर (भी) ही पीए ।
श्रोतागण - तो कर्ज को कैसे लैटाया जाए ?
चार्वाक - मेरी शेष (बची हुई) कविता सुनिए -
घी पीकर , परिश्रम करके लोगों का कर्ज उतार दें ।


(छ) (काव्यपाठश्रवणेन उत्प्रेरित: एक: बालको पि आशुकवितां रचयति , हासपूर्वकं च श्रावयति )
बालक: - श्रूयताम् , श्रूयतां भो:! ममापि काव्यम् -
सरलार्थ - (काव्यपाठ के सुनने से प्रेरित होकर एक बालक भी आशु कविता की रचना करता है और हंसी के साथ सुनाता है ।)
बालकः- आप मेरी भी कविता सुनिए ! सुनिए!

(ज)गजाधरं कविं चैव तुन्दिलं भोज्यलोलुपम् ।
कालान्तकं तथा वैघं चार्वाकं च नमाम्यहम् ।।
(काव्यं श्रावयित्वा 'हा हा हा' इति कृत्वा हसति । अन्ये चा पि हसन्ति । सर्वे गृहं गच्छन्ति । )
अन्वय - अहं गजाधरं कविं तुन्दिलं च एव भोज्य-लोलुपम् कालान्तकं तथा वैध चार्वाकं च नमामि ।
सरलार्थ - मैं गजाधर कविं तुन्दिलं च एव भोज्य - लोलुपम् कालान्तकं तथा वैध को और चार्वाकं को प्रमाण करता हूँ ।
(काव्य को सुनाकर 'हा हा हा' करके (बालक) हसता है । और दूसरे भी हँसते हैं । (और बाहर निकलकर) सभी (अपने-अपने) घर जाते हैं ।)

8 comments:

Contact Form

Name

Email *

Message *