Sanskrit translation of chapter 11 समवायो हि दुर्जयः in hindi class 7

समवायो हि दुर्जयः


(क) पुरा एकस्मिन्‌ वृक्षे एका चटका प्रतिवसति स्म। कालेन तस्या: सन्तति: जाता।
एकदा कश्चित्‌ प्रमत्त: गज: तस्य वृक्षस्य अध: आगत्य तस्य शाखां शुण्डेन
अत्रोटयत्‌।

सरलार्थ - पहले समय में एक वृक्ष पर एक चिड़िया रहती थी । समय के साथ उसके सन्तान उत्पन्न हुए एकबगर कोइ मस्त हाथी ने उस वृक्ष के नीचे आकर उसकी टहनी को सुंड से तोड़ दुया ।


(ख) चटकाया: नीडं भुवि अपततू। तेन अण्डानि विशीर्णाना। अथ सा चटका
व्यलपत्‌। तस्या: विलापं श्रुत्वा काष्ठकूट: नाम खगः दुःखेन ताम्‌ अपृच्छत्‌-'' भद्रे,
किमर्थ विलपसि?" इति। चटकावदत्‌-दुष्टेनैकेन गजेन मम सन्तति: नाशिता। तस्य गजस्य वधेनैव मम दुःखम्‌ अपसरेत्।"

सरलार्थ - चिड़िया का घोसला जमीन पर गिर गया । इससे अण्डे फूट गए । तब वह चिड़िया रोने लगी । उसके विलाप को सुनकर काषठकूट नामक पक्षी दुःख पूर्वक उससे पूछा - "देवी , तू किसलिए रो रही है ? " चिड़िया बोली "एक दुष्ट हाथी ने मेरे सन्तान नष्ट कर डाली । उस हाथी की हत्या से ही मेरा दुःख दुर होगा ।"


(ग) ततः काष्ठकूट: तां वीणारवा-नाम्न्या: मक्षिकाया: समीपम्‌ अनयत। तयो: वार्ता
श्रुत्वा मक्षिकावदत्‌-''ममापि मित्र मण्डूक: मेघनादः अस्ति। शीघ्रं तमुपेत्य यथोचितं
करिष्याम:।” तदानीं तौ मक्षिकया सह गत्वा मेघनादस्य पुर: सर्व वृत्तान्तं न्यवेदयताम्‌। मेघनाद: अवदत्‌- “यथाहं कथयामि तथा वुउरुतम्‌। मक्षिके। प्रथम त्वं मध्याह्ने तस्य गजस्य कर्ण शब्दं कुरु, येन सः नयने निमील्य स्थास्यति।

सरलार्थ - तब काष्ठकूट उसे वीणारवा नामक एक मक्खी के पास ले गया । उनकी बगत सुनकर मक्खी बोली "मेरी भी एक मित्र मेघनाद नगमक मेंढक है । शीघ्र उसके पास चलकर उचित कार्य करते हैं " । तब उन दोनों ने मक्खी के साथ जाकर मेघनाद के सामने सारा किस्सा (वृत्तांत) निवेदन कर दिया । मेघनाद बोला "जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो । हे मक्खी पहले तुम दोपहर के समय उस हाथी के कान में शब्द करो जिससे वह आँखे बंद करके पड़ा रहेगा"


(घ) तदा काष्ठकूट: चञ्चवा तस्य नयने स्फोटयिष्यति। एवं सः गज: अन्ध: भविष्यति। तृषार्त: सः जलाशयं गमिष्यति। मार्गे महान्‌ गर्त्त: अस्ति। तस्य अन्तिके अहं स्थास्यामि शब्दं च करिष्यामि। मम शब्देन तं गर्त जलाशयं मत्वा स तस्मिन्नेव गर्ते पतिष्यति मरिष्यति च।" अथ तथा कृते सः गज: मध्याह्ने मण्डूकस्य शब्दम्‌ अनुसृत्य महतः गर्तस्य अन्त: पतित: मृत: च। तथा चोक्तम्‌-
“बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जय:"
सरलार्थ - 
तब काष्ठकूट चोंच से उसकी आँखें फोड़ डालेगा । इस प्रकार वह हाथी अन्धा हो जाएगा । प्यास से व्याकुंल वह तालाब की ओर जाएगा । रास्ते में विशाल गड्ढा है । उसके पाश मैं खड़ा हो जाऊँगा और शब्द (टर्र - टर्र) करुँगा । मेरे शब्द के द्वारा उस गड्ढे को तालाब मानकर वह उस गड्ढे में ही गिर पड़ेगा और मर जाएगा । तब वैसा करने पर वह हाथी दोपहर के समय में मेंढक के शब्द का अनुसरण करके बड़े गड्ढे के अन्दर गिरा और मरा । और वैसे कहा गया है - अनेक निर्बल (छोटे प्राणियों का संगठन (मेल) भी मश्किल से जीतने योग्य होता है ।) (अर्थात् दर्जय होता है ।)


6 comments:

Contact Form

Name

Email *

Message *