अनारिकायाः जिज्ञासा
(क) बालिकाया: अनारिकाया: मनसि सर्वदा महती जिज्ञासा भवति। अत: सा बहून् प्रश्नान् पृच्छति। तस्या: प्रश्न: सर्वेषां बुद्धि: चक्रवत् भ्रमति। प्रात: उत्थाय सा अन्वभवत् यत् तस्या: मनः प्रसन्नं नास्ति। मनोविनोदाय सा भ्रमितुं गृहात् बहि: अगच्छत् |
सरलार्थ -
सरलार्थ -
(ख) भ्रमणकाले सा अपश्यत् यत् मार्गा: सुसज्जिता: सन्ति। सा चिन्तयति - किमर्थम् इयं सज्जा? सा अस्मरत् यत् अद्य तु मन्त्री आगमिष्यति। स: अत्न किमर्थम् आगमिष्यति इति विषये तस्या: जिज्ञासा: प्रारब्धा:। गृहम् आगत्य सा पितरम् अपृच्छत्- “पित: मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?' पिता अवदतू-'पुत्रि! नद्या; उपरि नवीन: सेतु: निर्मितः। तस्य उद्घाटनार्थ मन्त्री आगच्छति।”
सरलार्थ -
(ग) अनारिका पुनः अपृच्छत्-''पित:! कि मन्त्री सेतो: निर्माणम् अकरोत्?”! पिता अकथयत्-“न हि पुत्रि! सेतो: निर्माणं कर्मकरा: अकुर्वन्।” पुन: अनारिकाया: प्रश्न: आसीत्-''यदि कर्मकरा: सेतो: निर्माणम् अकुर्वनू, तदा मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?” पिता अवदत्- “यतो हि स: अस्माकं देशस्य मन्त्री।''
सरलार्थ -
अनारिका ने फिर पूछा - " हे पिता ! क्या मंत्री ने पूल का निर्माण किया है ? " पिता बोले - नही (निश्चित रुप से नहीं) बेटी । पुल का निर्माण मजदूरों ने किया है । पुनः (फिर से) अनारिका का प्रशन था - यदि नौकरों ने पुल का निर्माण किया है , तब मन्त्री किसलिए आ रहे हैं ? पिता (जी) बोले - क्योंकि वह हमारें देश के मन्त्री हैं ।
(घ) “पित:! सेतो: निर्माणाय प्रस्तराणि कुतः आयान्ति? कि तानि मन्त्री ददाति?'! विरक्तभावेन पिता उदतरत्-''अनारिके! प्रस्तराणि जना: पर्वतेभ्य: आनयन्ति।” “पित:! तहिं किम्, एतदर्थ मन्त्री धनं ददाति? तस्य पाश्वें धनानि कुत: आगच्छन्ति?'! एतान् प्रश्नान् श्रुत्वा पिताउवदत्-'' अरे! प्रजा: धनं प्रयच्छन्ति।”
सरलार्थ -
हे पिता (जी) ! पुल के निर्माण के लिए पत्थर कहाँ से आते हैं ? क्या उन्हें मन्त्री देता है ? " विरक्तभाव (उदासीन भाव) से पिता (जी) उत्तर दिए - "हे अनारिका ! पत्थर (तो) लोग पर्वत से लाते है ।" (फिर अनारिका पूछी) "हे पिता (जी) ! तो क्या , इसके लिए मन्त्री धन देते हैं ? उसके (उनके) पास धन कहाँ से आते हैं ? इन प्रश्नों को सुनकर पिता (जी) बोले - अरे ! प्रजा सरकार के लिए धन देती है ।"
(ङ) विस्मिता अनारिका पुन: अपृच्छत्-''पित:] कर्मकरा: पर्वतेभ्य: प्रस्तराणि आनयन्ति। ते एवं सेतु निर्मान्ति। प्रजा: धनं ददति। तथापि सेतो: उद्घाटनार्थ मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?” पिता अवदत्-''प्रथममेव अहम् अकथयम् यत् सः देशस्य मन्त्री अस्ति। स जनप्रतिनिधि: अपि अस्ति। जनताया: धनेन निर्मितस्य सेतो: उद्घाटनाय जनप्रतिनिधि: आमन्त्रित भवति। चल सुसज्जिता भूत्वा विद्यालयं चल।” अनारिकाया: मनसि इतोरपि बहव: प्रश्ना: सन्ति।
अनारिका ने फिर पूछा - " हे पिता ! क्या मंत्री ने पूल का निर्माण किया है ? " पिता बोले - नही (निश्चित रुप से नहीं) बेटी । पुल का निर्माण मजदूरों ने किया है । पुनः (फिर से) अनारिका का प्रशन था - यदि नौकरों ने पुल का निर्माण किया है , तब मन्त्री किसलिए आ रहे हैं ? पिता (जी) बोले - क्योंकि वह हमारें देश के मन्त्री हैं ।
(घ) “पित:! सेतो: निर्माणाय प्रस्तराणि कुतः आयान्ति? कि तानि मन्त्री ददाति?'! विरक्तभावेन पिता उदतरत्-''अनारिके! प्रस्तराणि जना: पर्वतेभ्य: आनयन्ति।” “पित:! तहिं किम्, एतदर्थ मन्त्री धनं ददाति? तस्य पाश्वें धनानि कुत: आगच्छन्ति?'! एतान् प्रश्नान् श्रुत्वा पिताउवदत्-'' अरे! प्रजा: धनं प्रयच्छन्ति।”
सरलार्थ -
हे पिता (जी) ! पुल के निर्माण के लिए पत्थर कहाँ से आते हैं ? क्या उन्हें मन्त्री देता है ? " विरक्तभाव (उदासीन भाव) से पिता (जी) उत्तर दिए - "हे अनारिका ! पत्थर (तो) लोग पर्वत से लाते है ।" (फिर अनारिका पूछी) "हे पिता (जी) ! तो क्या , इसके लिए मन्त्री धन देते हैं ? उसके (उनके) पास धन कहाँ से आते हैं ? इन प्रश्नों को सुनकर पिता (जी) बोले - अरे ! प्रजा सरकार के लिए धन देती है ।"
(ङ) विस्मिता अनारिका पुन: अपृच्छत्-''पित:] कर्मकरा: पर्वतेभ्य: प्रस्तराणि आनयन्ति। ते एवं सेतु निर्मान्ति। प्रजा: धनं ददति। तथापि सेतो: उद्घाटनार्थ मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?” पिता अवदत्-''प्रथममेव अहम् अकथयम् यत् सः देशस्य मन्त्री अस्ति। स जनप्रतिनिधि: अपि अस्ति। जनताया: धनेन निर्मितस्य सेतो: उद्घाटनाय जनप्रतिनिधि: आमन्त्रित भवति। चल सुसज्जिता भूत्वा विद्यालयं चल।” अनारिकाया: मनसि इतोरपि बहव: प्रश्ना: सन्ति।
सरलार्थ -
आश्चर्यचकित अनारिका ने फिर पूछा "हे पिता ! (यदि) मजदुर पर्वत से पत्थर लाते हैं । वे ही पुल का निर्माण करते हैं । प्रजा सरकार को धन देती है । फिर भी पुल के उद्घाटन के लिए मन्त्री किसलिए आ रहे हैं ? पिता बोले - पहले ही मैने कहा कि वह ही देश के मन्त्री हैं । (तु) बहुत सवाल करती है । चलो । तैयार होकर विद्यालय चलो । अब भी अनारिका के मन में बहुत प्रश्न है ।"
S.no | Chapters |
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1 | सुभाषितानि |
2 | दुर्बुद्धि: विनश्यति |
3 | स्वावलम्बबम् |
4 | हास्यबालकविसम्मेलनम् |
5 | पण्डिता रमाबाइ |
6 | सदाचार |
7 | सङ्कल्प: सिंद्धिदायक: |
8 | त्रिवर्णः |
9 | |
10 | विश्वबन्धुत्वम् |
11 | समवायो हि दुर्जयः |
12 | विद्याधनम् |
13 | अमृतं संस्कृतम |
14 | अनारिकायाः जिज्ञासा |
15 | लालनगीतम |
It's some spelling mistakes.please fix and improve them.
ReplyDeleteBut by the way it's a great website for study sanskrit. I got 95/95 in my exam 😃👌. Thanks myhelpertk
Thank you so much.... some spllings are mistake. Please fix them . By the way good app😁
ReplyDeleteVery interesting chapter😀😁
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