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भरिष्याम्याहरिष्यामि च
सलिलकुम्भं कियत्कालम्। भरिष्या........
शनैर्यदि यामि चिररात्राय
विलपिष्यति गृहे बालः।
द्रुतं यदि यामि वसनं मे
भवेदार्द्रं सलिलवेगैः।। भरिष्या........
अन्वयः कियत् कालम् सलिलकुम्भं भरिष्यामि आहरिष्यामि च। यदि (अहम्) शनैः यामि (तर्हि) गृहे बालः चिररात्राय विलपिष्यति। यदि द्रुतं यामि (तर्हि) मे वसनं सलिलवेगैः आर्द्रं भवेत्।।
सरलार्थ: कितने समय मैं पानी के घड़े को भरूँगी और (जल को) लाउँफगी। भरूँगी...
यदि मैं धीरे-धीरे जाती हूँ तो देर रात तक घर में (मेरा) बच्चा रोएगा। यदि तेज गति से जाती हूँ तो पानी के वेग (धार) अर्थात् पानी के छलकने से मेरा वस्त्र गीला हो जाएगा। भरूँगी...
इमान् नूपुररवान् रुनझुन-
मयान् आकर्ण्य नागरिकाः।
सुखं शय्यामध्शियाना
झटिति ते जागरिष्यन्ति।। भरिष्या...
अन्वयः (ये) नागरिकाः सुखं शय्याम् अध्शियानाः (सन्ति)। ते (अपि) रुनझुनमयान् इमान् नूपुररवान् आकर्ण्य झटिति जागरिष्यन्ति।।
सरलार्थ: झुनझुन की आवाश करने वाले इन पायलों की ध्वनि (स्वरों) को सुनकर जो नागरिक सुखपूर्वक बिस्तर पर सुखपूर्वक सोए हुए हैं वे (नागरिक) शीघ्र ही जाग जाएँगे। भरूँगी...
तनुः कूपो महालम्ब-
स्तले तस्यास्ति पानीयम्।
कृषन्त्या मे घटं रज्ज्वा
करेऽप्यास्ते महास्फ़ोटः।। भरिष्या...
अन्वय: अयं कूपः तनुः महालम्बः (च अस्ति)। पानीयम् त्य तले अस्ति। रज्ज्वा घटं कृषन्त्याः मे करे अपि महास्फ़ोटः अस्ति।
सरलार्थ: यह कुआँ (ऊपर से) सँकरा (छोटा), पतले मुँह वाला और बहुत गहरा है; उसके तल में जल है। अर्थात् पानी बहुत नीचे है मेरे द्वारा रस्सी से घड़े को (ऊपर) खींचने से (मेरे) हाथ में भी बड़ा फफोला हो जाता है। भरूँगी...
जलवाहिनी
पाठ का परिचय
यह गीत भोजपुरी लोकगीत का अनुवाद है। इसमें गाँव की पानी भरने वाली स्त्राी का चित्राण किया गया है। कुएँ से घड़े में जल भरकर लाते समय उसके मन में आने वाले अनेक भावों का वर्णन किया गया है।भरिष्याम्याहरिष्यामि च
सलिलकुम्भं कियत्कालम्। भरिष्या........
शनैर्यदि यामि चिररात्राय
विलपिष्यति गृहे बालः।
द्रुतं यदि यामि वसनं मे
भवेदार्द्रं सलिलवेगैः।। भरिष्या........
अन्वयः कियत् कालम् सलिलकुम्भं भरिष्यामि आहरिष्यामि च। यदि (अहम्) शनैः यामि (तर्हि) गृहे बालः चिररात्राय विलपिष्यति। यदि द्रुतं यामि (तर्हि) मे वसनं सलिलवेगैः आर्द्रं भवेत्।।
सरलार्थ: कितने समय मैं पानी के घड़े को भरूँगी और (जल को) लाउँफगी। भरूँगी...
यदि मैं धीरे-धीरे जाती हूँ तो देर रात तक घर में (मेरा) बच्चा रोएगा। यदि तेज गति से जाती हूँ तो पानी के वेग (धार) अर्थात् पानी के छलकने से मेरा वस्त्र गीला हो जाएगा। भरूँगी...
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
भरिष्याम्याहरिष्यामि | भरूँगी, लाऊँगी। |
सलिलकुम्भम् | पानी के घड़े को। |
कियत्कालम् | कितने समय। |
शनैर्यदि | यदि धीरे से। यामि-जाती हूँ। |
चिररात्राय | बहुत समय तक। |
विलपिष्यति | रोएगा/विलाप करेगा। |
बालः | बच्चा। |
द्रुतम् | जल्दी, शीघ्र। |
यामि | जाती हूँ। |
वसनम् | वस्त्र |
मे | मेरा। |
भवेदार्द्रम् (भवेत्+आर्द्रम्) | गीला हो जाएगा। |
सलिलवेगैः | पानी की धार / वेग से। |
इमान् नूपुररवान् रुनझुन-
मयान् आकर्ण्य नागरिकाः।
सुखं शय्यामध्शियाना
झटिति ते जागरिष्यन्ति।। भरिष्या...
अन्वयः (ये) नागरिकाः सुखं शय्याम् अध्शियानाः (सन्ति)। ते (अपि) रुनझुनमयान् इमान् नूपुररवान् आकर्ण्य झटिति जागरिष्यन्ति।।
सरलार्थ: झुनझुन की आवाश करने वाले इन पायलों की ध्वनि (स्वरों) को सुनकर जो नागरिक सुखपूर्वक बिस्तर पर सुखपूर्वक सोए हुए हैं वे (नागरिक) शीघ्र ही जाग जाएँगे। भरूँगी...
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
इमान् | इन (को)। |
नूपुररवान् | पायल की ध्वनि। |
रुनझुनमयान् | झुन-झुन की आवाश करने वाले। |
आकर्ण्य | सुनकर। |
नागरिकाः | नगर के लोग। |
सुखम् | सुखपूर्वक। |
शय्याम् | बिस्तर पर। |
अध्शियाना | सोते हुए। |
झटिति | शीघ्र। |
ते | वे। |
जागरिष्यन्ति | जाग जाएँगे। |
तनुः कूपो महालम्ब-
स्तले तस्यास्ति पानीयम्।
कृषन्त्या मे घटं रज्ज्वा
करेऽप्यास्ते महास्फ़ोटः।। भरिष्या...
अन्वय: अयं कूपः तनुः महालम्बः (च अस्ति)। पानीयम् त्य तले अस्ति। रज्ज्वा घटं कृषन्त्याः मे करे अपि महास्फ़ोटः अस्ति।
सरलार्थ: यह कुआँ (ऊपर से) सँकरा (छोटा), पतले मुँह वाला और बहुत गहरा है; उसके तल में जल है। अर्थात् पानी बहुत नीचे है मेरे द्वारा रस्सी से घड़े को (ऊपर) खींचने से (मेरे) हाथ में भी बड़ा फफोला हो जाता है। भरूँगी...
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
तनुः | सँकर, पतले मुँह वाला। |
कूपः | कुआँ। |
महालम्बस्तले (महालम्बः + तले) | तल में काफी गहरा। |
तस्यास्ति (तस्य + अस्ति) | उसका है। |
पानीयम् | जल। |
कृषन्त्या | खींचने से। |
मे | मेरे द्वारा। |
घटः | घड़ा। |
रज्ज्वा | रस्सी से। |
करेऽप्यास्ते | हाथ में होता है। |
महास्फ़ोटः | फफोला। |
Chapters | Link |
---|---|
Chapter 1 | सूभाषितानि |
Chapter 2 | बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता |
Chapter 3 | भगवदज्जुकम |
Chapter 4 | सदैव पुरतो निधेहि चरणम |
Chapter 5 | धर्मे धमनं पापे पुण्यम |
Chapter 6 | प्रेमलस्य प्रेमल्याश्च कथा |
Chapter 7 | जलवाहिनी |
Chapter 8 | संसारसागरस्य नायकाः |
Chapter 9 | सप्तभगिन्यः |
Chapter 10 | अशोक वनिका |
Chapter 11 | सावित्री बाई फुले |
Chapter 12 | कः रक्षति कः रक्षितः |
Chapter 13 | हिमालयः |
Chapter 14 | आर्यभटः |
Chapter 15 | प्रहेलिका |
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