Sanskrit translation of chapter 13 हिमालयः in hindi class 8

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हिमालयः

पाठ का परिचय
यह पाठ महाकवि कालिदास द्वारा लिखित 'कुमार सम्भव' नामक महाकाव्य के प्रथम सर्ग से लिया गया है। इन पद्यों में हिमालय की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन किया गया है।

(क) अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:।
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः।।1।।
अन्वयः उत्तरस्यां दिशि हिमालयो नाम देवतात्मा नगाधिराज: अस्ति। (असौ) पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य पृथिव्याः मानदण्डः इव स्थितः।।
सरलार्थ: उत्तर दिशा में हिमालय नामक देवताओं की आत्मा (निवास योग्य स्थान) पर्वतों का राजा (स्थित) है, जो पूर्व और पश्चिम दिशा में स्थित दोनों समुद्रों में पृथ्वी के मापक पैमाने की तरह प्रविष्ट होकर खड़ा है अर्थात् दोनों समुद्रों के बीच में स्थित होकर पृथ्वी की गहराई को माप रहा है।
शब्दार्थ: भावार्थ:
उत्तरस्याम् दिशि उत्तर दिशा में।
देवतात्मा (देवता + आत्मा।) देवताओं की आत्मा (निवास)।
नगाधिराज: पर्वतराज।
पूर्वापरौ (पूर्व+अपरौ) पूर्व और पश्चिम में स्थित (दोनों)।
तोयनिधी दोनों समुद्रों को।
वगाह्य प्रविष्ट होकर, ध्ँसकर।।
स्थितः खड़ा है।
पृथिव्या इव (पृथिव्याः + इव) मानो पृथ्वी के।
मानदण्डः मापक, पैमाना, नापने के लिए प्रयुक्त उपकरण।

(ख) अनन्तरत्नप्रभवस्य यस्य हिमं न सौभाग्यविलोपि जातम्।
एको हि दोषो गुणसन्निपाते निमज्जतीन्दोः किरणेष्विवाङ्क:।।2।।
अन्वयः यस्य अनन्तरत्नप्रभवस्य हिमं सौभाग्यविलोपि न जातम्। गुणसन्निपाते हि एकः दोषः इन्दोः अङ्क: किरणेषु इव निमज्जति।।
सरलार्थ: जिस अनन्त रत्नों के उत्पादक (हिमालय) के बड़प्पन को नष्ट करने वाला बर्फ भी (सौभाग्य को नष्ट करने में) समर्थ नहीं हुआ। निश्चित रूप से गुणों के इकठ्ठा होने पर एक दोष भी वैसे ही विलीन हो जाता है जैसे चन्द्रमा की किरणों में ध्ब्बा (विलीन हो जाता है) ।
शब्दार्थ: भावार्थ:
​प्रभवस्य उत्पन्न करने वाले का।
हिमम् बर्फ।
सौभाग्यविलोपि सौन्दर्य, महिमा, बड़प्पन को लुप्त करने वाला।
जातम् हुआ।
दोषः बुराई।
सन्निपाते इकट्ठा होने पर।
निमज्जति विलीन हो जाता है, नगण्य होता है।
इन्दोः चन्द्रमा के।
किरणेषु किरणों में।
इव के समान।
अङ्क: कलंक, ध्ब्बा।

(ग) आमेखलं सञ्च्रतां घनानां छायामध्ः सानुगतां निषेव्य।
उद्वेजिता वृष्टिभिराश्रयन्ते शृङ्गणि यस्यातपवन्ति सिद्धा।।3।।
अन्वय:आमेखलं सञ्च्रतां घनानां सानुगतां छायाम् अध्ः निषेव्य वृष्टिभिः उद्वेजिता सिद्धा यस्य आतपवन्ति शृङ्गणि आश्रयन्ते।
सरलार्थ: (जिसके) मध्यभाग तक घूमते हुए बादलों की, चोटियों पर गई हुई छाया का नीचे सेवन करके बारिश से घबराए हुए तपस्वी लोग जिसकी धूप से युक्त चोटियों पर आश्रय लेते हैं।
शब्दार्थ: भावार्थ:
आमेखलम् मध्य भाग तक।
सञ्च्रताम् विचरण करते हुए।
घनानाम् बादलों के।
अध्ः नीचे।
सानुगताम् चोटियों पर गई हुई।
निषेव्य सेवन करके, सुख पाकर।
उद्वेजिता घबराए हुए, परेशान।
वृष्टिभिः बारिश से।
आश्रयन्ते आश्रय लेते हैं।
शृङ्गणि चोटियाँ।
आतपवन्ति धूप से युक्त पर।
सिद्धा योगी जन।

(घ) कपोलकण्डूः करिभिर्विनेतुं विघट्टितानां सरलद्रुमाणाम्।
यत्र स्त्रुत्क्षीरतया प्रसूतः सानूनि गन्ध्ः सुरभीकरोति।।4।।
अन्वय: यत्र कपोलकण्डूः विनेतुं करिभिः विघट्टितानां सरलद्रुमाणाम् स्त्रुत्क्षीरतया प्रसूतः गन्धः सानूनि सुरभीकरोति।
सरलार्थ: जहाँ कनपटी की खुजली मिटाने के लिए हाथियों के द्वारा रगड़े हुए देवदारु के सीधे वृक्षों का दूध् निकलने से उत्पन्न हुआ सुगन्ध् पर्वत की चोटियों को सुगन्ध्ति कर देता है।
शब्दार्थ: भावार्थ:
कपोलकण्डूः कनपटी की खुजली।
करिभिः हाथियों के द्वारा।
विनेतुम् दूर करने के लिए।
विघट्टितानाम् रगड़े हुओं का।
सरलद्रुमाणाम् देवदारु के वृक्षों का।
यत्र जहाँ।
स्त्रुत्क्षीरतया दूध् निकलने से।
प्रसूतः उत्पन्न।
सानूनि पर्वत की चोटियाँ।
गन्ध्ः सुगन्ध्।
सुरभीकरोति सुगन्ध्ति कर देता है।

(ङ) दिवाकराद्रक्षति यो गुहासु लीनं दिवाभीतमिवान्ध्कारम्।
क्षुद्रेऽपि नूनं शरणं प्रपन्ने ममत्वमुच्चैःशिरसां सतीव।।5।।
अन्वयः यः दिवाभीतम् इव गुहासु लीनम् अंधकारम् दिवाकरात् रक्षति। (एतत) क्षुद्रे अपि शरणं प्रपन्ने सति नूनं उच्चैःशिरसाम् ममत्वम् इव। (प्रतीयते)
सरलार्थ: जो दिन से मानो डरे हुए गुफाओं में छिपे हुए अंधकार की सूर्य की किरणों से रक्षा करता है। (यह) निश्चय से नीच के भी शरणागत होने पर मानों ऊँचे सिर वालों अर्थात् महापुरुषों का उनके प्रति ममत्व/स्नेह व्यक्त हो रहा हो।
शब्दार्थ: भावार्थ:
दिवाकरात् सूर्य से।
रक्षति रक्षा करता है।
गुहासु गुफाओं में।
लीनम् छिपे हुए।
दिवाभीतम् दिन से डरे हुए, उल्लू।
अंधकारम् अँधेरा।
क्षुद्रेऽपि अधम या नीच के।
नूनम् निश्चय से।
शरणम्प्रपन्ने शरण में आने पर।
ममत्वम् अपनापन।
उच्चैःशिरसा-म् ऊँचे सिर से।
सतीव (सति+इव) होने पर मानों।
उच्चैःशिरसाम् ऊँचे सिर वालों का/महापुरुषों का।



ChaptersLink
Chapter 1सूभाषितानि
Chapter 2बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
Chapter 3भगवदज्जुकम
Chapter 4सदैव पुरतो निधेहि चरणम
Chapter 5धर्मे धमनं पापे पुण्यम
Chapter 6प्रेमलस्य प्रेमल्याश्च कथा
Chapter 7जलवाहिनी
Chapter 8संसारसागरस्य नायकाः
Chapter 9सप्तभगिन्यः
Chapter 10अशोक वनिका
Chapter 11सावित्री बाई फुले
Chapter 12कः रक्षति कः रक्षितः
Chapter 13हिमालयः
Chapter 14आर्यभटः
Chapter 15प्रहेलिका

2 comments:

  1. कृपया 6 7,8 कक्षाओं के लिए संस्कृत और हिन्दी विषयों की हल की पाठ्य सामग्री भेजने की कृपा करें।

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