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सर्वर्तुकुसुमै रम्यैः फलवद्भिश्च पादपैः।
पुष्पितानामशोकानां श्रिया सूर्योदयप्रभाम्।।1।।
अन्वय: सर्वर्तुकुसुमैः फलवद्भिः च रम्यैः पादपैः पुष्पितानाम् अशोकानां श्रिया सूर्योदयप्रभाम् (वनिकाॅम् अपश्यत)
सरलार्थ: सभी ऋतुओं में (मिलने वाले) फूलों से, फलदार सुन्दर वृक्षों से (शोभायमान), पुष्पों से युक्त अशोक वृक्षों की शोभा से सूर्योदय काल की छटा के समान शोभा वाली (वाटिका) को (देखा)। अर्थात् अशोक वाटिका का सौंदर्य अनुपम था।
कर्णिकारै: कुसुमितैः किंशुकैश्च सुपुष्पितैः।
स देशः प्रभया तेषां प्रदीप्त इव सर्वतः।।2।।
अन्वय: कुसुमितैः कर्णिकारैः सुपुष्पितैः किंशुकै: च सः देशः तेषां प्रभया सर्वतः प्रदीप्तः इव (आसीत)
सरलार्थ: खिले हुए कनेर के फूलों से और फूलों से लदे हुए टेसू/पलाश के पेड़ों से वह स्थान उनकी छटा से मानो चारों ओर से प्रकाशित था। अर्थात् फल-फूलों से युक्त सुंदर वृक्षों से उस स्थली की शोभा अत्यधिक हो गई थीं।
पुंनागाः सप्तपर्णाश्च चम्पकोद्दालकास्तथा।
विवृद्धमूला बहवः शोभन्ते स्म सुपुष्पिताः।।3।।
अन्वय: सुपुष्पिताः विवृद्धमूलाः च पुंनागाः सप्तपर्णाः तथा चम्पकोद्दालकाः बहवः (वृक्षाः) शोभन्ते स्म।
सरलार्थ: पुंनाग (श्वेत कमल अथवा नागकेसर) छितवन, चम्पा तथा उद्दालक (बहुवार) आदि अनेक सुन्दर फूल वाले वृक्ष जिनकी जड़ें बहुत मोटी थीं वहाँ शोभा दे रहे थे। अर्थात् विविध् प्रकार के पुष्पित वृक्षों से उस स्थल की शोभा बढ़ रही थी।
नन्दनं विबुधेद्यानं चित्रं चैत्ररथं यथा।
अतिवृत्तमिवाचिन्त्यं दिव्यं रम्यश्रियावृतम्।।4।।
अन्वय: यथा विबुधेद्यानम् नन्दनम् चैत्ररथं (च) चित्रम् (तथैव) तत् अशोकवनम् रम्यश्रिया आवृतम् दिव्यम् इव अतिवृत्तम् अचिन्त्यम् (च आसीत)
सरलार्थ: जिस प्रकार देवताओं का कानन नन्दन और कुबेर का चैत्ररथ विचित्र है (उसी प्रकार, वह अशोकवन) सुन्दर शोभा से युक्त मानो दिव्य था; वह सबसे श्रेष्ठ और अकल्पनीय था।
सर्वर्तुपुष्पैर्निचितं पादपैर्मधुगन्धिभिः।
नानानिनादैरुद्यानं रम्यं मृगगणद्विजैः।।5।।
अन्वय: सर्वर्तुपुष्पैः मधुगन्धिभिः (च) पादपैः निचितम् तत् उद्यानम् नानानिनादैः मृगगण-द्विजैः रम्यम् आसीत्
सरलार्थ: सभी ऋतुओं के फूलों से और मधुर गन्ध् वाले पौधें से भरपूर वह उद्यान अनेक प्रकार की ध्वनि करने वाले पशु व पक्षियों से सुन्दर लग रहा था।
अनेकगंधप्रवहं पुण्यगन्ध्ं मनोहरम्।
शैलेन्द्रमिव गन्धढ्यं द्वितीयं गंधमादनम्।।6।।
अन्वय: (सः हनुमान) अनेकग्रन्ध्प्रवहम् मनोहरम् पुण्यगन्ध्म् द्वितीयं गंधमादनम् इव गन्धढ्यम् शैलेन्द्रम् अपश्यत्।
सरलार्थ: (उस हनुमान ने) अनेक प्रकार की सुगन्ध् को फ़ैलाने वाले, सुन्दर, शुद्ध गन्ध्युक्त (पर्वत को देखा) जो दूसरे गंधमादन नामक पर्वतराज के समान सुगन्ध् का धनी था।
अशोकवनिकायां तु तस्यां वानरपुंगवः।
स ददर्शाविदूरस्थं चैत्यप्रासादमूर्जितम्।।7।।
अन्वय: सः वानरपुङ्गवः तस्याम् अशोकवनिकायां तु अविदूरस्थम् ऊर्जितम् चैत्यप्रासादम् ददर्श।
सरलार्थ: उस वानर श्रेष्ठ ने उस अशोकवन में पास में ही स्थित एक ऊँचा गोलाकार मन्दिर देखा। (जिसमें सीता को देखा)
अशोक वनिका
पाठ का परिचय
यह पाठ आदि कवि वाल्मीकिकृत रामायण के सुन्दरकाण्ड के पन्द्रहवें सर्ग से लिया गया है। हनुमान जी सीता जी की खोज में जब लंका में प्रवेश करते हैं तो वहाँ के प्रसिद्ध उद्यान अशोक वाटिका की शोभा का आनन्ददायक दर्शन करते हैं। इस पाठ में अशोक वाटिका जो दिव्य/अद्वितीय सौरभ, स्वाद, सौन्दर्य एवं अनेक प्रकार के वर्णों से युक्त कुसुमों, लताओं, वृक्षों आदि से सुशोभित है, उसी का वर्णन किया गया है।सर्वर्तुकुसुमै रम्यैः फलवद्भिश्च पादपैः।
पुष्पितानामशोकानां श्रिया सूर्योदयप्रभाम्।।1।।
अन्वय: सर्वर्तुकुसुमैः फलवद्भिः च रम्यैः पादपैः पुष्पितानाम् अशोकानां श्रिया सूर्योदयप्रभाम् (वनिकाॅम् अपश्यत)
सरलार्थ: सभी ऋतुओं में (मिलने वाले) फूलों से, फलदार सुन्दर वृक्षों से (शोभायमान), पुष्पों से युक्त अशोक वृक्षों की शोभा से सूर्योदय काल की छटा के समान शोभा वाली (वाटिका) को (देखा)। अर्थात् अशोक वाटिका का सौंदर्य अनुपम था।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
सर्वर्तुकुसुमैः (सर्वर्तु = सर्व + ऋतु) | सभी तुओं में (खिलने वाले) फूलों से। |
रम्यैः | सुन्दर (से)। |
फलवन्दिश्च (फलवद्भिः + च) | और फलदार से। |
पादपैः | वृक्षों से। |
पुष्पितानामशोकानाम् (पुष्पितानाम् + अशोकानाम) | फूलों से युक्त अशोक वृक्षों का। |
श्रिया | शोभा से। |
सूर्योदयप्रभाम् | सूर्योदय के समय की शोभा वाली (वाटिका) को। |
कर्णिकारै: कुसुमितैः किंशुकैश्च सुपुष्पितैः।
स देशः प्रभया तेषां प्रदीप्त इव सर्वतः।।2।।
अन्वय: कुसुमितैः कर्णिकारैः सुपुष्पितैः किंशुकै: च सः देशः तेषां प्रभया सर्वतः प्रदीप्तः इव (आसीत)
सरलार्थ: खिले हुए कनेर के फूलों से और फूलों से लदे हुए टेसू/पलाश के पेड़ों से वह स्थान उनकी छटा से मानो चारों ओर से प्रकाशित था। अर्थात् फल-फूलों से युक्त सुंदर वृक्षों से उस स्थली की शोभा अत्यधिक हो गई थीं।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
कर्णिकारैः | कनेर से। |
कुसुमितैः | फूलयुक्त (से)। |
किंशुकै: | पलाश से। |
प्रभया | शोभा से। |
प्रदीप्तः | प्रकाशित। |
इव | के समान। |
सर्वतः | सब ओर से। |
देशः | स्थान। |
पुंनागाः सप्तपर्णाश्च चम्पकोद्दालकास्तथा।
विवृद्धमूला बहवः शोभन्ते स्म सुपुष्पिताः।।3।।
अन्वय: सुपुष्पिताः विवृद्धमूलाः च पुंनागाः सप्तपर्णाः तथा चम्पकोद्दालकाः बहवः (वृक्षाः) शोभन्ते स्म।
सरलार्थ: पुंनाग (श्वेत कमल अथवा नागकेसर) छितवन, चम्पा तथा उद्दालक (बहुवार) आदि अनेक सुन्दर फूल वाले वृक्ष जिनकी जड़ें बहुत मोटी थीं वहाँ शोभा दे रहे थे। अर्थात् विविध् प्रकार के पुष्पित वृक्षों से उस स्थल की शोभा बढ़ रही थी।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
पुंनागाः | नागकेसर नाम का वृक्ष। |
सप्तपर्णाः | सप्तवर्ण नाम के वृक्ष। |
चम्पकोद्दालकाः (चम्पक + उद्दालकाः) | चम्पक और उद्दालक नाम के फूल/पौधे। |
विवृ(मूलाः | लम्बी जड़ों वाले वृक्ष। |
शोभन्ते स्म | शोभायमान हो रहे थे। |
नन्दनं विबुधेद्यानं चित्रं चैत्ररथं यथा।
अतिवृत्तमिवाचिन्त्यं दिव्यं रम्यश्रियावृतम्।।4।।
अन्वय: यथा विबुधेद्यानम् नन्दनम् चैत्ररथं (च) चित्रम् (तथैव) तत् अशोकवनम् रम्यश्रिया आवृतम् दिव्यम् इव अतिवृत्तम् अचिन्त्यम् (च आसीत)
सरलार्थ: जिस प्रकार देवताओं का कानन नन्दन और कुबेर का चैत्ररथ विचित्र है (उसी प्रकार, वह अशोकवन) सुन्दर शोभा से युक्त मानो दिव्य था; वह सबसे श्रेष्ठ और अकल्पनीय था।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
नन्दनम् | नन्दन नाम का वन/अथवा आनन्दित करने वाला। |
विबुधेद्यानम् | देवताओं का उद्यान। |
चित्रम् | विचित्र। |
चैत्ररथम् | कुबेर का चैत्ररथ नामक वन। |
अतिवृत्तम् | (सबसेद्ध बढ़कर/श्रेष्ठ। |
रम्यश्रियावृतम् (रम्यश्रिया + आवृतम्) | सुन्दर शोभा से युक्त/भरपूर। |
अचिन्त्यम् | जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती (अकल्पनीयद्ध। (अतिवृत्तमिवाचित्तम् = अतिवृत्तम् + इव + अचिन्त्यम्) |
सर्वर्तुपुष्पैर्निचितं पादपैर्मधुगन्धिभिः।
नानानिनादैरुद्यानं रम्यं मृगगणद्विजैः।।5।।
अन्वय: सर्वर्तुपुष्पैः मधुगन्धिभिः (च) पादपैः निचितम् तत् उद्यानम् नानानिनादैः मृगगण-द्विजैः रम्यम् आसीत्
सरलार्थ: सभी ऋतुओं के फूलों से और मधुर गन्ध् वाले पौधें से भरपूर वह उद्यान अनेक प्रकार की ध्वनि करने वाले पशु व पक्षियों से सुन्दर लग रहा था।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
सर्वर्तुपुष्पैः (सर्वर्तु = सर्व + ऋतु) | सब ऋतुओं में सुलभ फूलों से। |
मधुगन्धिभिः | मधुर गन्ध् वाले। |
नानानिनादैः | अनेक प्रकार के स्वरों से (अनेक प्रकार के स्वर करने वालों से)। |
मृगगणद्विजैः | पशुओं के समूह तथा पक्षियों से (द्विज = पक्षी)। |
अनेकगंधप्रवहं पुण्यगन्ध्ं मनोहरम्।
शैलेन्द्रमिव गन्धढ्यं द्वितीयं गंधमादनम्।।6।।
अन्वय: (सः हनुमान) अनेकग्रन्ध्प्रवहम् मनोहरम् पुण्यगन्ध्म् द्वितीयं गंधमादनम् इव गन्धढ्यम् शैलेन्द्रम् अपश्यत्।
सरलार्थ: (उस हनुमान ने) अनेक प्रकार की सुगन्ध् को फ़ैलाने वाले, सुन्दर, शुद्ध गन्ध्युक्त (पर्वत को देखा) जो दूसरे गंधमादन नामक पर्वतराज के समान सुगन्ध् का धनी था।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
अनेकगंधप्रवहम् | अनेक प्रकार की गन्ध् को फ़ैलाने वाले (को) । |
पुण्यगन्ध्म् | शुद्ध गन्ध् वाले को। |
शैलेन्द्रम् | पर्वतराज को। |
गन्धढ्यम् (गन्ध् + आढ्यम्) | गन्ध् से भरपूर। |
गंधमादनम् | गन्धमादन नामक पर्वत। |
अशोकवनिकायां तु तस्यां वानरपुंगवः।
स ददर्शाविदूरस्थं चैत्यप्रासादमूर्जितम्।।7।।
अन्वय: सः वानरपुङ्गवः तस्याम् अशोकवनिकायां तु अविदूरस्थम् ऊर्जितम् चैत्यप्रासादम् ददर्श।
सरलार्थ: उस वानर श्रेष्ठ ने उस अशोकवन में पास में ही स्थित एक ऊँचा गोलाकार मन्दिर देखा। (जिसमें सीता को देखा)
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
अशोकवनिकायाम् | अशोक वन में। |
वानरपुंगवः | श्रेष्ठ वानर (हनुमान)। |
ददर्श | देखा। |
अविदूरस्थं | ज्यादा दूर नहीं। |
चैत्यप्रासादमूर्जितम् (चैत्यप्रासादम् + ऊर्जितम्) | गोलाकार ऊँचा मन्दिर। |
Chapters | Link |
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Chapter 1 | सूभाषितानि |
Chapter 2 | बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता |
Chapter 3 | भगवदज्जुकम |
Chapter 4 | सदैव पुरतो निधेहि चरणम |
Chapter 5 | धर्मे धमनं पापे पुण्यम |
Chapter 6 | प्रेमलस्य प्रेमल्याश्च कथा |
Chapter 7 | जलवाहिनी |
Chapter 8 | संसारसागरस्य नायकाः |
Chapter 9 | सप्तभगिन्यः |
Chapter 10 | अशोक वनिका |
Chapter 11 | सावित्री बाई फुले |
Chapter 12 | कः रक्षति कः रक्षितः |
Chapter 13 | हिमालयः |
Chapter 14 | आर्यभटः |
Chapter 15 | प्रहेलिका |
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