Sanskrit translation of chapter 6 प्रेमलस्य प्रेमल्याश्च कथा in hindi class 8

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प्रेमलस्य प्रेमल्याश्च कथा

पाठ का परिचय
प्रस्तुत कहानी शिक्षाविद् गिजु भाई (1885-1939) की रचना 'पेमला पेमली की कहानी' का अनुवाद है। इस कहानी में एक महिला घरेलू कामों को पूरा करने की अपनी पारम्परिक भूमिका को वाक् चातुर्य से बदलने की कोशिश करती है।

एकः आसीत् प्रेमलः एका चासीत् प्रेमली। काष्ठच्छेदेन श्रान्तः प्रेमलः सायंकाले गृहमागच्छत्, प्रेमली चावदत्-प्रेमलि! अद्य खलु भृशं श्रान्तोऽस्मि। मह्यं जलम् उष्णं कृत्वा देहि। अहं स्नात्वा तस्मिन् जले चरणौ स्थापयामि। तेन मम श्रान्तिः अपगमिष्यति।
प्रेमली अवदत्-तवानुरोध्ं कथमहम् अस्वीकुर्याम्? पश्य, तत्र हण्डी उपरि स्थापिता। ताम् अवतारय। प्रेमलः हण्डीमवातारयत्। ततः स अवदत्-अधुना किं करोमि? प्रेमली अवदत्-निकटे कूपः वर्तते। तत्रा गत्वा जलं भृत्वा आनय। प्रेमलः घटे जलं सम्पूर्य आगच्छत्। पुनः प्रेमलीम् अपृच्छत्-इदानीं किम्?

सरलार्थ: एक प्रेमल था और एक प्रेमली थी। लकड़ी काटने से थका हुआ प्रेमल सायंकाल (शाम) को घर आया और प्रेमली से बोला-'हे प्रेमली! निश्चय ही आज मैं बहुत थक गया हूँ। मुझे जल गर्म करके दो। मैं नहाकर उस जल में पैरों को रखूँगा। उससे मेरी थकान दूर हो जाएगी।
प्रेमली बोली-तुम्हारी प्रार्थना मैं वैफसे अस्वीकार(नामंजूर) करूँ? देखो, वहाँ हँडिया ऊपर रखी है। उसको उतारो। प्रेमल ने हँडिया को उतारा। उसके बाद वह बोला-अब क्या करूँ? प्रेमली बोली-पास में कुआँ है। वहाँ जाकर पानी भरकर लाओ। प्रेमल घड़े में पानी भरकर आ गया। पिफर प्रेमली से पूछा-अब क्या?

शब्दार्थ: भावार्थ:
एका एक।
काष्ठच्छेदेन लकड़ियाँ काटने से।
श्रान्तः थका हुआ।
आगच्छत् आया।
खलु अवश्य ही (अव्यय)।
भृशम् बहुत अधिक।
उष्णम् गर्म।
स्नात्वा स्नान करके।
चरणौ पैरों को।
स्थापयामि रखता हूँ।
श्रान्तिः थकान।
अपगमिष्यति दूर हो जाएगी।
तवानुरोध्ं तुम्हारी प्रार्थना (निवेदन)।
अस्वीकुर्याम् अस्वीकार करूँ।
हण्डी हँडिया।
स्थापिता रखी हुई है।
अवतारय उतारो।
अवातारयत् उतार लिया।
निकटे समीप में।
कूपः कुआँ।
वर्तते है।
भृत्वा भरकर।
घटे घड़े में।


प्रेमली अवदत्-अधुना चुल्यां काष्ठानि प्रज्ज्वालय। प्रेमलः काष्ठानि प्रज्ज्वाल्य अपृच्छत्-अग्रे किं करवाणि? प्रेमली अकथयत्-यावत् चुल्ली सम्यक् न ज्वलति, तावत् फ़ुत्कुरु, किमन्यत्? प्रेमलेन चुल्ली सम्यक् प्रज्वालिता। अथ च अपृच्छत्-अधुना किम् करवाणि? प्रेमली अवदत्-घटात् हण्ड्यां जलं पूरय। ततः हण्डीं चुल्याम् उपरि स्थापय।

सरलार्थ: प्रेमली बोली-अब चूल्हे में लकड़ियों को जलाओ। प्रेमल ने लकड़ियों को जलाकर पूछा-आगे क्या करूँ? प्रेमली ने कहा-जब तक चूल्हा अच्छी तरह से नहीं जलता है, तब तक फ़ूँको और क्या? प्रेमल ने चूल्हा अच्छी तरह से जला दिया। और उसके बाद (अब) पूछा-अब क्या करूँ? प्रेमली बोली-घड़े से हँडिया में पानी भरो। उसके बाद हँडिया को चूल्हे के ऊपर रख दो।

शब्दार्थ: भावार्थ:
चुल्याम् चूल्हे में, पर।
काष्ठानि लकड़ियाँ (लकड़ियों को)।
प्रज्ज्वाल्य जलाकर।
करवाणि करूँ।
अग्रे आगे।
चुल्ली चूल्हा।
सम्यक् अच्छी तरह से।
ज्वलति जलती है।
तावत् तब तक।
फ़ुत्कुरु फ़ूँको।
प्रज्वालिता जलाया।
घटात् घड़े से।
हण्ड्याम् हँडिया में।
स्थापय रखो।

प्रेमलः हण्डीं चुल्याम् अस्थापयत्। किञ्चित कालानन्तरं च पुनः प्रेमलीम् अपृच्छत्-इदानीं किं करवाणि? प्रेमली अवदत्-किमन्यत्, हण्डीम् अवतारय। हण्डीमवतार्य प्रेमलः पृच्छति-अधुना? प्रेमली वदति-अधुना हण्डीं स्नानगृहे स्थापय। प्रेमलः हण्डीं स्नानगृहे निधय पृच्छति-अधुना? प्रेमली निरदिशत्-सम्प्रति स्नानं कुरु। प्रेमलः स्नात्वा अपृच्छत्-अधुना किं करणीयम्?

सरलार्थ: प्रेमल ने हाँडी को चूल्हे के ऊपर रख दिया। और कुछ समय बाद प्रेमली से पूछा-अब क्या करूँ? प्रेमली बोली-और क्या, हाँडी को उतारो।
हाँडी को उतारकर प्रेमल पूछता है-अब? प्रेमली कहती है-अब हँडिया को स्नानघर में रखो। प्रेमल हाँडी को स्नानघर में रखकर पूछता है-अब? प्रेमली ने आदेश दिया-अब स्नान करो। प्रेमल ने स्नान करके पूछा-अब क्या करूँ।

शब्दार्थ: भावार्थ:
अस्थापयत् रख दिया।
कालानन्तरम् समय के बाद।
करवाणि करूँ।
अवतारय उतारो।
अवतार्य उतारकर।
स्थापय रखो।
स्नानगृहे स्नानघर में।
निधय रखकर।
निरदिशत् निर्देश दिया।
सम्प्रति अब।
स्नात्वा स्नान करके (नहाकर)।
अधुना इस समय (अब)।
करणीयम् करना चाहिए।


प्रेमली अवदत्-इदानीं हण्डीं यथास्थानं निधेहि। प्रेमलः हण्डीं संस्थाप्य शरीरं हस्तेन संस्पृश्य अकथयत्-अरे, कीदृशं पुष्पमिव शरीरं लघु जातम्। यदि त्वं प्रतिदिनं एवमेव जलम् उष्णं कृत्वा मह्यं ददासि तर्हि कियत् शोभनं भवेत्। प्रेमली अवदत्-किमहं न इति कथयामि? परन्तु अत्र कस्य आलस्यम्? प्रेमलः अवदत्-आलस्यं तु ममैव। परम् अग्रे आलस्यं न करिष्यामि।
प्रेमली अवदत्-अस्तु! सम्प्रति आवां भोजनं कुर्वः।

सरलार्थ: प्रेमली बोली-अब हँडिया को उचित स्थान पर रख दो। प्रेमल हाँडी को रखकर शरीर को हाथ से स्पर्श करके कहने लगा-अरे, फूल की तरह कैसा शरीर हल्का हो गया। यदि तुम हर रोश ऐसे ही पानी को गर्म करके मुझे दो तो कितना अच्छा हो जाए। प्रेमली बोली-क्या मैं 'न' कहती हूँ? परन्तु यहाँ किसका आलस्य है? प्रेमल बोला-आलस्य तो मेरा ही है। परन्तु आगे (भविष्य में) आलस्य नहीं करूँगा।
प्रेमली बोली-ठीक है! अब हम दोनों भोजन करते हैं।

शब्दार्थ: भावार्थ:
यथास्थानम् ठीक स्थान पर।
निधेहि रख दो।
संस्थाप्य रखकर।
संस्पृश्य छूकर।
कीदृशम् कैसा।
पुष्पमिव फूल की तरह।
लघु हल्का।
जातम् हो गया।
कियत् कितना।
शोभनम् अच्छा।
कस्य किसका।
अस्तु ठीक है।
आवाम् हम दोनों।
कुर्वः करते हैं (दोनों)।



ChaptersLink
Chapter 1सूभाषितानि
Chapter 2बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
Chapter 3भगवदज्जुकम
Chapter 4सदैव पुरतो निधेहि चरणम
Chapter 5धर्मे धमनं पापे पुण्यम
Chapter 6प्रेमलस्य प्रेमल्याश्च कथा
Chapter 7जलवाहिनी
Chapter 8संसारसागरस्य नायकाः
Chapter 9सप्तभगिन्यः
Chapter 10अशोक वनिका
Chapter 11सावित्री बाई फुले
Chapter 12कः रक्षति कः रक्षितः
Chapter 13हिमालयः
Chapter 14आर्यभटः
Chapter 15प्रहेलिका

7 comments:

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