Sanskrit translation of chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम  in hindi class 8

सदैव पुरतो निधेहि चरणम 

पाठ का परिचय
श्रीधरभास्कर वर्णेकर ने अपने इस गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्नान किया है। श्रीधर राष्ट्रवादी कवि हैं जिन्होंने इस गीत के द्वारा जागरण और कर्मठता का सन्देश दिया है।


चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।

अन्वय: चल, चल पुरतः चरणम् निधेहि। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

सरलार्थ: चलो, चलो। आगे कदम रखो। सदा ही आगे कदम रखो।

शब्दार्थ: भावार्थ:
चल चलो
पुरतः आगे
निधेहि रखो
चरणम् कदम
सदैव हमेशा ही


गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्।।
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो.................।।

अन्वय: ननु गिरिशिखरे निजनिकेतनम्, यानं विना एव नगारोहणम्। स्वकीयं बलं साधनम् भवति, सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

सरलार्थ: निश्चय (निश्चित रूप) से पर्वत की चोटी पर अपना घर है। अतः बिना वाहन के ही पहाड़ पर चढ़ना है। (उस समय तो) अपना बल ही अपना साधन होता है। इसलिए सदा ही आगे कदम रखो।

शब्दार्थ: भावार्थ:
गिरिशिखरे पर्वत की चोटी पर
ननु निश्चय से
निजनिकेतनम् अपना निवास
विनैव बिना ही
यानम् वाहन
नगारोहणम् पर्वत पर चढ़ना
बलम् शक्ति (ताकत)
स्वकीयम् अपना
साधनम् साधन (माध्यम)


पथि पाषाणा विषमाः प्रखराः।
हिंस्त्रा: पशवः परितो घोराः।।
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो.......................।।

अन्वय: पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः, परितः हिंस्त्रा: घोराः पशवः (भ्रमन्ति)। यद्यपि गमनम् सुदुष्करं खलु (अस्ति), सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

सरलार्थ: रास्ते में विचित्र (अजीब) से नुकीले और ऊबड़-खाबड़ पत्थर तथा चारों ओर भयानक चेहरे और हिंसक व्यवहार वाले पशु घूमते हैं। (अतः) निश्चित रूप से जबकि वहाँ जाना कठिन है। (फिर भी) हमेशा ही आगे-आगे कदम रखो।

शब्दार्थ: भावार्थ:
पथि मार्ग में
पाषाणाः पत्थर
विषमाः असामान्य
प्रखराः तीक्ष्ण, नुकीले
हिंस्त्रा: हिंसक
पशवः पशु-पक्षी
परितः चारों ओर
घोराः भयंकर, भयानक
सुदुष्करम् अत्यन्त कठिनतापूर्वक साध्य
खलु निश्चय से
यद्यपि जबकि
गमनम् जाना (चलना)


जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथा ऽनुरक्तिम्।।
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो.......................।।

अन्वय: भीतिं जहीहि शक्तिम् भज, तथा राष्ट्रे अनुरक्तिम् विधेहि। सततं ध्येय-स्मरणम् कुरु कुरु, सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

सरलार्थ: डर को छोड़ दो और ताकत को याद करो। उसी प्रकार अपने देश से प्रेम (भी) करो। (और) सतत् अर्थात् लगातार अपने उद्देश्य को याद रखो। सदैव आगे (ही) कदम रखो।

शब्दार्थ: भावार्थ:
जहीहि छोड़ो, छोड़ दो
भीतिम् डर को
भज भजो, जपो
शक्तिम् शक्ति को
विधेहि करो
राष्ट्रे देश में। तथा-उसी प्रकार से
अनुरक्तिम् प्रेम, स्नेह
कुरु करो
सततम् लगातार
ध्येय - स्मरणम् उद्देश्य (लक्ष्य) का स्मरण


ChaptersLink
Chapter 1सूभाषितानि
Chapter 2बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
Chapter 3डिजीभारतम्
Chapter 4सदैव पुरतो निधेहि चरणम
Chapter 5कण्टकेनैव कण्टकम्‌(old)
Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना
Chapter 7भारतजनताऽहम्
Chapter 8संसारसागरस्य नायकाः
Chapter 9सप्तभगिन्यः
Chapter 10नीतिनवनीतम्‌
Chapter 11सावित्री बाई फुले
Chapter 12कः रक्षति कः रक्षितः
Chapter 13क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः
Chapter 14आर्यभटः
Chapter 15प्रहेलिका

28 comments:

  1. Replies
    1. I am Tanvi shelke .

      Best explaination
      👆👆👆👆👆👆👆👆👆. 👌🏼👌🏼👌🏼

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  2. nice explanation and correct translation
    👌👌👌👌👌🤟🤟🤟🤟🤚🤚🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    last paragraph written isn't in book although

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. Thankyou so much...In this pandemic and lockdown...I learn very well with this...Now I can give my exams with full preparation...

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  5. You explained better then my teacher 😅

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  6. Also tomorrow is my exam.....it helped me very much,thanks

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  7. 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌

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  8. Thank you so much..thanks a lot..very helpful..

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  9. Good explanation and thanks to all of you

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  10. Best explanation. 👍👍👍👍

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  11. This very to explaination the Chapter in this Sanskrit and easy but I can't understand it chapters in Hindi.But I very thankful to you very helpful to all . Thank you

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  12. Thanks for posting this! It is very helpful 👍👍👍🤘🤘🤘

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