Sanskrit translation of chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना in hindi class 8

गृहं शून्यं सुतां विना

[यह पाठ कन्याओं की हत्या पर रोक और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने की प्रेरणा हेतु निर्मित है। समाज में लड़के और लड़कियों के बीच भेद-भाव की भावना आज भी समाज में यत्र-तत्र देखी जाती है। जिसे दूर किए जाने की आवश्यकता है। संवादात्मक शैली में इस बात को सरल संस्कृत में प्रस्तुत किया गया है]

“शालिनी ग्रीष्मावकाशे पितृगृहम्‌ आगच्छति। सर्वे प्रसन्‍नमनसा तस्या: स्वागत कुर्वन्ति परं तस्या: भ्रातृजाया उदासीना इब दृश्यते"
अनुवाद-
ग्रीष्म अवकाश (गर्मी की छुट्टी) में शालिनी पिता के घर आती है सभी प्रसन्‍न मन से उसका स्वागत करते हैं किंतु उसकी भाभी उदास दिखाई देती है

शालिनी- भ्रातृजाये! चिन्तिता इब प्रतीयसे,सर्व कुशलं खलु?
अनुवाद-
शालिनी -भाभी| चिंतित सी प्रतीत हो रही है (कुछ परेशान से लग रही हो )सब कुछ कुशल तो है

माला - आमू शालिनि! कुशलिनी अहम्‌। त्वदर्थ किम्‌ आनयानि, शीतलपेयं चायं वा?
अनुवाद-
माला- हां शालिनी मैं कुशल्न हूं तुम्हारे लिए क्या लाऊं ठंडी पेय या चाय?

शालिनी- अधुना तु किमपि न वाउछामि। रात्रौ सर्वैं: सह भोजनमेव करिष्यामि।
अनुवाद-
शालिनी- अभी तो मैं कुछ नहीं चाहती रात्रि में सबके साथ ही भोजन करूंगी|

(भोजनकालेऽपि मालाया: मनोदशा स्वस्था न प्रतीयते सम, परं सा मुखेन किमपि नोक्तवती)
अनुवाद-
(भोजन के समय भी माला की मनोदशा ठीक नहीं लग रही थी किंतु उसने मुख से कुछ भी नहीं कहा)

राकेश:- भगिनि शालिनि! दिष्ट्या त्वं समागता। अद्य मम कार्यालये एका महत्त्वपूर्णा गोष्ठी सहसैव निश्चिता। अद्यैव मालाया: चिकित्सिकया सह मेलनस्थ समय: निर्धारित: त्व॑ मालया सह चिकित्तसिकां प्रति गच्छ, तस्या: परामर्शानुसारं यद्विधेयं तद्‌ सम्पादय।
अनुवाद-
राकेश बहन शालिनी भाग्य से तुम आ गई हो मेरे कार्यालय में आज एक महत्वपूर्ण गोष्ठी अचानक ही निश्चित हुई है। आज ही माला का चिकित्सिका के साथ मिलने का समय निर्धारित है । तुम माला के साथ चिकित्सकों के पास चली जाओ उसके परामर्श के अनुसार जो करना हो वह करो।

'शालिनी- किमभवत्‌? भ्रातृजायाया: स्वास्थ्यं समीचीनं नास्ति? अहं तु हा: प्रभृति पश्यामि सा स्वस्था न प्रतिभाति इति प्रतीयते समा ।
अनुवाद-
शालिनी - क्‍या हुआ? भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है क्या? मैं तो कल से देख रही हूं ऐसा लग रहा था जैसे वह स्वस्थ नहीं हैं

राकेश:- चिन्ताया: विषय: नास्ति। त्वं मालया सह गच्छ। मार्गे सा सर्व ज्ञापयिष्यति।
अनुवाद-
राकेश- चिंता की कोई बात नहीं है तुम माला के साथ जाओ रास्ते में वह सब कुछ बता देगी

(माला शालिनी च चिकित्तसिकां प्रति गच्छन्त्यौ वार्ता कुरुतः)
अनुवाद-
(माला और शालिनी चिकित्सिका के पास जाती हुई बात करती है)

'शालिनी- किमभवत्‌? भ्रातृजाये! का समस्याउस्ति?
अनुवाद-
शालिनी: क्‍या हुआ भाभी क्‍या समस्या है।

माला-शालिनि! अहं मासत्रयस्य गर्भ स्वकुक्षौ धारयामि। तव भ्रातुः आग्रह: अस्ति यत्‌ अहं लिड्डपरीक्षणं कारयेयं कुक्षौ कन्याउस्ति चेत्‌ गर्भ पातयेयम्‌। अहमू अतीव उद्विग्नाउस्मि परं तब भ्राता वार्तामेव न श्रृणोति।
अनुवाद-
माला: शालिनी मैं 3 महीने का गर्भ अपनी कोख में धारण कर रही रे व्द भाई की जिद है कि लिंग की जांच करवाओ में यदि कन्या है तो मैं गर्भपात करवा लूं मैं बहुत व्याकुल हूं परंतु तुम्हारे भाई बात ही नहीं सुनते

शालिनी- भ्राता एवं चिन्तयितुमपि कं प्रभवति? शिशु: कन्याउस्ति चेत्‌ वधाहा? जघन्य॑ कृत्यमिदम्‌। त्वम्‌ विरोधं न कृतवती? सः तब शरीरे स्थितस्य शिशोः वधार्थ चिन्त्यति त्वम्‌ तृष्णीम्‌ तिष्ठसि? अधुनैव गृहं चल, नास्ति आवश्यकता लिड्डपरीक्षणस्यथा भ्राता यदा गृहम्‌ आगमिष्यति अहम्‌ वार्ता करिष्ये।
अनुवाद-
शालिनी : भाई ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं। शिशु यदि कन्या है तो वह वध के योग्य है यह तो घोर पाप कर्म है। तुम ने विरोध नहीं किया ?
क्या वह क शरीर में स्थित शिशु की हत्या के लिए सोच रहे न [मम चुप हो? अभी घर चलो लिंग जांच की आवश्यकता नहीं है। भाई जब घर आएंगे तब मैं बात करूंगी।

(सन्ध्याकाले भ्राता आगच्छति हस्तपादादिकं प्रक्षाल्य वस्त्राणि च परिवर्त्य पूजागृहं गत्वा दीप प्रज्वालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति। तदनन्तरं चायपानार्थम्‌ सर्वेष्पि एकत्रिता:।)
अनुवाद-
(शाम को भाई आता है और हाथ पैर धो कर और कपड़े बदल कर और पूजा घर में जा कर दिया जलता है और भवानी की स्तुति करता है उसके बाद चाय पीने के लिए सभी लोग इकट्ठा होते हैं)

'राकेश:- माले! त्वं चिकित्सिकां प्रति गतवती आसी:, किम्‌ अकथयत्‌ सा?
अनुवाद-



राकेश : माला तुम चिकित्सक के पास गड़े थी उन्होंने क्या कहा?

(माला मौनमेवाश्रयति। तदैव क्रौडन्ती त्रिवर्षीया पुत्री अम्बिका पितु: क्रोडे उपविशति तस्मात्‌ चाकलेहं च याचते। राकेश: अम्बिकां लालयति, चाकलेहं प्रदाय तां क्रोडात्‌ अवतारयति। पुनः मालां प्रति प्रश्नवाचिकां दृष्टिं क्षिपति। शालिनी एतत्‌ सर्व दृष्ट्वा उत्तरं ददाति)
अनुवाद-
(माला मौन ही सुनती है) तभी खेलती हई 3 वर्ष की पुत्री अंबिका पिता की गोद में बैठ जाती है और उनसे चॉकलेट मांगती हू राकेश अंबिका को लाड-प्यार करता है उसे चॉकलेट देता है और गोद से उतार देता है फिर से माला के प्रति प्रश्नवाचक दृष्टि से देखता है शालिनी यह सब देख कर उत्तर देती है

'शालिनी- श्रात:! त्वं किं ज्ञातुमिच्छसि? तस्या: कुक्षि पुत्र: अस्ति पुत्री वा? किमर्थम्‌? षण्मासानन्तरं सर्व स्पष्टं भविष्यति, समयात्‌ पूर्व किमर्थम्‌ अयम्‌ आयास:?
अनुवाद-
शालिनी: भाई! तुम क्‍या जानना चाहते हो? उसकी कोख में पुत्र है या पुत्री किसलिए 6 महीने के बाद सब स्पष्ट हो जाएगा, यह प्रयास समय से पहले क्यों ?

राकेश:- भगिनि, त्वं तु जानासि एवं अस्माकं गृहे अम्बिका पुत्रीरूपेण अस्त्येव अधुना एकस्य पुत्रस्य आवश्यकतास्ति तर्हिं.
अनुवाद-
राकेश: बहन तुम तो जानती ही हो कि हमारे घर में पुत्री के रूप में अंबिका है ही, जब एक पुत्र की आवश्यकता है तो.


'शालिनी- तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति चेत्‌ हन्तव्या? (तीब्रस्वरेण) हत्याया: पापं कर्तु प्रवृत्तोडसि त्वम्‌।
राकेश:- न, हत्या तु न .....
अनुवाद-
शालिनी: तो यदि कोख में पुत्री है तो वह हत्या के योग्य है? (ऊंची आवाज में) तुम हत्या का पाप करने में लगे हो


'शालिनी- तरहिं किमस्ति निर्धणं कृत्यमिदम्‌? सर्वथा विस्मृतवान्‌ अस्माकं जनक: कदापि पुत्रीपुत्रयो: विभेद॑ न कृतवान्‌? सः सर्वदैव मनुस्मृतेः पंक्तिमिमाम्‌ उद्धरति सम “आत्मा वै जायते पुत्र: पुत्रेण दुहििता समा” त्वमपि सायं प्रात: देवीस्तुतिं करोषि? किमर्थ सूष्टे: उत्पादिन्या: शकत्या: तिरस्कारं करोषि? तब मनसि इयती कुत्सिता वृत्ति: आगता, इदं चिन्तयित्वैव अहं कुण्ठिताउस्मि। तव शिक्षा वृथा..
अनुवाद-
शालिनी: तो यह घृणा के योग्य कार्य क्‍या है? पूरी तरह से भूल गए हो कि हमारे पिता श्री ने कभी पुत्री और पुत्र में भेद नहीं किया? वह हमेशा ही मनुस्मृति की इस पंक्ति का उदाहरण देते थे आत्मा के रुप में हे उत्पन्न होता है पुत्री पुत्र के समान होती हे । तुम भी सुबह शाम देवी की स्तुति करते हो तो सृष्टि की उत्पादन शक्ति का तिरस्कार क्यों करते हो? तुम्हारे मन में इतना दुष्ट विचार आ गया मैं यह सोचकर ही जड़ (पत्थर) हो गई हूं। तुम्हारी शिक्षा ही व्यर्थ हो गई...


राकेश:- भगिनि! विरम विर्म। अहं स्वापराधं स्वीकरोमि लज्जितश्चास्मि। अद्यप्रभृति कदापि गर्हितमिदं कार्य स्वप्नेषपि न चिन्तयिष्यामि। यथैव अम्बिका मम हृदयस्थ सम्पूर्णस्नेहस्थ अधिकारिणी अस्ति, तथैव आगन्ता शिशु: अपि स्नेहाधिकारी भविष्यति पुत्र: भवतु पुत्री वा। - अहं स्वगर्हितचिन्तनं प्रति पश्चात्तापमग्न: अस्मि, अहं कथं विस्मृतवान्‌
अनुवाद-
राकेश बहन रुको रुको मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूं और लज्जित भी हूं और आज से ऐसा गंदा कार्य मैँ सपने में भी नहीं सोचूंगा !जैसे अंबिका मेरे हृदय के पूर्ण नहीं किया अधिकारी है वैसे ही आने वाला शिशु भी स्नेह का अधिकारी होगा !पुत्र हो या पत्री मैं अपने निंदनीय चिंतन के प्रति पश्चाताप मग्न हूं मैं कैसे भूल गया

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यग्रैता: न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।”
अनुवाद-
"जहां नारियों काु सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं किंतु जहां इनका सम्मान नहीं होता वहां सारे कार्य निष्फल हो जाते हैं"


अथवा “पितुर्दशगुणा मातेति।” त्वया सम्मार्ग: प्रदर्शित: भगिनि। कनिष्ठाउपि त्वं मम गुरुरसि।
अनुवाद-
अथवा पिता से दस गुना माता होती है तुमने मुझे सनमार्ग दिखाया है !हे बहन !तुम छोटी होते हुए भी मेरी गुरु हो


'शालिनी- अल पश्चात्तापेन। तव मनस: अन्धकार: अपगत: प्रसन्‍नताया: विषयोउयम्‌। भ्रातृजाये! आगच्छ। सर्वा चिन्तां त्यज आगन्तु: शिशो: स्वागताय च सनन्‍नद्धा भव। भ्रातः त्वमपि प्रतिज्ञां कुरू - कन्याया: रक्षणे, तस्या: पाठने दत्तचित्त: स्थास्यसि “पुत्रीं रक्ष, पुत्री 'पाठय” इतिसर्वकारस्य घोषणेयं तदैव सार्थिका भविष्यति यदा वयं सर्वे मिलित्वा चिन्तनमिदं अथार्थरूपं करिष्याम:
अनुवाद-
शालिनी पश्चाताप ना करें यह खुशी की बात है कि तुम्हारे मन का अंधकार दूर हो गया । भाभी! आओ सारी चिंता छोड़ दो आने वाले शिशु के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ। भाई! तुम भी प्रतिज्ञा करी कन्या की रक्षा में उसे पढ़ाने में तुमसा सावधान रहोगे "पुत्री की रक्षा करो पुत्री को पढ़ाओ बेटी बचाओ बेटी पा सरकार की घोषणा तभी सार्थक होगी जब हम सब मिल्रकर इस सोच को सार्थक करेंगे।

या गार्गी श्रुतचिन्तने नृपनये पाञ्चालिका विक्रमे, लक्ष्मी: शत्रुविदारणे गगनं विज्ञानाड्भणे कल्पना इन्द्रोद्योगपथे चर खेलजगति ख्याताभितः साइना,सेयं स्त्री सकलासु विक्षु सबला सर्व: सदोत्साह्मताम्‌॥
अनुवाद-
यथार्त: जो स्त्री तत्वों के चिंतन में गार्गी की तरह, राजनीति में पांचाली की तरह, पराक्रम में लक्ष्मी (रानी लक्ष्मी बाई) की तरह, शत्रु के विनाश में आकाश की तरह(असीमित),विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला की तरह, उद्योग के पथ पर कठिन परिश्रम करने में इंद्र की तरह, खेल जगत में चारों और प्रसिद्धि पाने वाली साइना की तरह, ऐसी वह स्त्री सभी दिशाओं में सफल हो तथा सभी के द्वारा प्रोत्साहित रहे।


ChaptersLink
Chapter 1सूभाषितानि
Chapter 2बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
Chapter 3डिजीभारतम्
Chapter 4सदैव पुरतो निधेहि चरणम
Chapter 5कण्टकेनैव कण्टकम्‌(old)
Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना
Chapter 7भारतजनताऽहम्
Chapter 8संसारसागरस्य नायकाः
Chapter 9सप्तभगिन्यः
Chapter 10नीतिनवनीतम्‌
Chapter 11सावित्री बाई फुले
Chapter 12कः रक्षति कः रक्षितः
Chapter 13क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः
Chapter 14आर्यभटः
Chapter 15प्रहेलिका

27 comments:

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