कः रक्षति कः रक्षितः (कौन रक्षा करता है किसकी रक्षा की जाये।)
पाठ का परिचय
[प्रस्तुत पाठ स्वच्छता तथा पर्यावरण सुधार को ध्यान में रखकर सरल संस्कृत में
लिखा गया एक संवादात्मक पाठ है। हम अपने आस-पास के वातावरण को किस प्रकार स्वच्छ
रखें कि नदियों को प्रदूषित न करें, वृक्षों को न काटें, अपितु अधिकाधिक
वृक्षारोपण करें और धरा को शस्यश्यामला बनाएँ। प्लास्टिक का प्रयोग कम करके
पर्यावरण संरक्षण में योगदान करें। इन सभी बिन्दुओं पर इस पाठ में चर्चा की गई
है। पाठ का प्रारंभ कुछ मित्रों की बातचीत से होता है, जो सांयकाल में दिनभर की
गर्मी से व्याकुल होकर घर से बाहर निकले हैं -]
(क) (ग्रीष्मौ सायंकाले विद्युदभावे प्रचण्डोष्मणा पीडितः वैभवः गृहात्
निष्क्रामति)
वैभवः – अरे परमिन्दर्! अपि त्वमपि विद्युदभावेन पीडितः बहिरागतः?
परमिन्दर् – आम् मित्र! एकतः प्रचण्डातपकालः अन्यतश्च विद्युदभावः परं
बहिरागत्यापि पश्यामि यत् वायुवेगः तु सर्वथाऽवरुद्धः।
सत्यमेवोक्तम् प्राणिति पवनेन जगत् सकलं, सृष्टिर्निखिला चैतन्यमयी।
क्षणमपि न जीव्यतेऽनेन विना, सर्वातिशायिमूल्यः पवनः॥
विनयः – अरे मित्र! शरीरात् न केवलं स्वेदबिन्दवः अपितु स्वेदधाराः इव
प्रस्रवन्ति स्मृतिपथमायाति शुक्लमहोदयैः रचितः श्लोकः। तप्तर्वाताघातैरवितुं
लोकान् नभसि मेघाः,
आरक्षिविभागजना इव समये नैव दृश्यन्ते॥
सरलार्थ-
गर्मी के मौसम में शाम के समय बिजली के चले जाने पर बहुत तेज गर्मी से परेशान
वैभव घर से बाहर निकलता है।)
वैभव – अरे परमिंदर ! क्या तुम भी बिजली के चले जाने से परेशान होकर बाहर आ गए
हो।
परमिंदर – हाँ मित्र ! एक तो बहुत तेज गर्मी का समय है दूसरा बिजली चली गई है,
परन्तु बाहर आने के बाद देखता हूँ कि हवा की गति भी पूरी तरह से रुक गई
है।
सत्य ही कहा है –
वायु से ही प्राणवान है अर्थात जीवित है, पूरी सृष्टि वायु के कारण ही सजीव
है।
इसके बिना अर्थात वायु के बिना क्षण भर के लिए भी जीवित नहीं रहा जा सकता है।
सबसे अधिक मूल्यवान हवा ही है।
विनय – अरे मित्र ! शरीर से न केवल पसीने की बूंदें बल्कि पसीने की नदियाँ है।
शुक्ल महोदय के द्वारा रचित श्लोक याद आ रहा है।
तपती हुई हवा के आघात से लोगों को बचाने के लिए आकाश में बादल भी सुरक्षा विभाग
के लोगों की तरह दिखाई नहीं दे रहे है। अर्थात जिस प्रकार जरुरत समय
सुरक्षा लोग दिखाई नहीं देते वैसे ही गर्मी समय आकाश नहीं
दिखाई देते हैं।
शब्दार्थ-
प्रचण्ड-भयंकर।
बहिः-बाहर।
आगतः-आ गया।
प्रचण्ड-तीव्र।
अन्यतः-और भी।
आगत्य-आकर।
अवरुद्धः-रुक गया।
प्राणिति-जीवित है (Survives)।
सकलम्-सारा।
निखिला-सम्पूर्णं (Whole)।
जीव्यते-जीवित है।
सर्वातिशायि-सबसे बढकर।
स्वेदबिन्दवः-पसीने की बूंदें।
प्रस्रवन्ति-बह रही हैं।
तप्तैः-गर्म।
वाताघातैः-लू के द्वारा।
अवितुम्-रक्षा करने के लिए।
नभसि-आकाश में। आरक्षिः-पुलिस।
दृश्यन्ते-दिखाई पड़ते हैं।
(ख) परमिन्दर् – आम् अद्य तु वस्तुतः एव
निदाघतापतप्तस्य, याति तालु हि शुष्कताम्।
पुंसो भयादितस्येव, स्वेदवज्जायते वपुः॥
जोसेफः – मित्राणि! यत्र-तत्र बहुभूमिकभवनानां, भूमिगतमार्गाणाम्,
विशेषतः
मैट्रोमार्गाणां, उपरिगमिसेतूनाम् मार्गेत्यादीनां निर्माणाय वृक्षाः
कर्त्यन्ते
तर्हि अन्यत् किमपेक्ष्यते अस्माभिः? वयं तु विस्मृतवन्तः एव
एकेन शुष्कवृक्षण दह्यमानेन वह्निना।
दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा॥
सरलार्थ –
परमिंदर – आज तो वास्तव में (अर्थात वास्तव में ही आकाश में बादल दिखाई नहीं दे
रहे)
तेज गर्मी के ताप से मनुष्य तालु सुख जाता है। भयभीत मनुष्य का शरीर पसीने से
तरबतर हो जाता है।
जोसेफ – मित्र ! यहाँ – वहाँ पृथ्वी पर भवनों का, भूमिगत मार्गों का, विशेष रूप
से ऊपर से मैट्रो के मार्गों के पुलों इत्यादि के निर्माण के अत्यधिक वृक्ष काटे
जाते हैं। अवश्य ही हमसे क्या अपेक्षा की जाती है? हम तो भूल ही गए –
एक सूखे हुए वृक्ष के द्वारा पूरा वन जला दिया जाता है उसी प्रकार कुपुत्र के
द्वारा पूरा कुल का ही नाश हो जाता है।
शब्दार्थ-
वस्तुतः-वास्तव में।
निदाघ-गर्मी।
याति-प्राप्त होता है।
शुष्कताम्-सूखापन।
पुंसः-मनुष्य का।
भयादितस्य-भयभीत।
वपुः-शरीर।
स्वेदवत्-पसीने से तर।
उपरिगामि-ऊपर से जाने वाले।
कर्त्यन्ते-काटे जाते हैं।
शुष्क-सूखा।
विस्मृतवन्तः- भूल गए हैं।
वह्निना-अग्नि के द्वारा।
दह्यमानेन-जलाए जाते हुए।
शक्ष्येम-सकेंगे।
आगच्छन्तु-आओ।
(ग) परमिन्दर् – आम् एतदपि सर्वथा सत्यम्! आगच्छन्तु नदीतीरं गच्छामः।
तत्र चेत्
काञ्चित् शान्तिं प्राप्तुं शक्ष्येम।
(नदीतीरं गन्तुकामाः बालाः यत्र-तत्र अवकरभाण्डारं दृष्ट्वा वार्तालापं
कुर्वन्ति)
जोसेफः – पश्यन्तु मित्राणि यत्र-तत्र प्लास्टिकस्यूतानि अन्यत् चावकरं
प्रक्षिप्तमस्ति।
कथ्यते यत् स्वच्छता स्वास्थ्यकरी परं वयं तु शिक्षिताः अपि अशिक्षिता
इवाचरामः अनेन प्रकारेण…. वैभवः – गृहाणि तु अस्माभिः नित्यं स्वच्छानि
क्रियन्ते परं किमर्थं स्वपर्यावरणस्य
स्वच्छतां प्रति ध्यानं न दीयते। विनयः पश्य-पश्य उपरितः इदानीमपि अवकरः
मार्गे क्षिप्यते।
(आहूय) महोदये! कृपां कुरू मार्गे भ्रमद्भ्यः । एतत् तु सर्वथा अशोभनं
कृत्यम्।
अस्मत्सदृशेभ्यः बालेभ्यः भवतीसदृशैः एवं संस्कारा देयाः ।
रोजलिन् – आम् पुत्र! सर्वथा सत्यं वदसि! क्षम्यताम्। इदानीमेवागच्छामि।
(रोजलिन् आगत्य बालैः साकं स्वक्षिप्तमवकर मार्गे विकीर्णमन्यदवकर चापि
सङ्गृह्य अवकरकण्डोले पातयति)
सरलार्थ –
परमिंदर – हाँ ये बिलकुल सही है। चलो नदी के किनारे चलते हैं। वहाँ कुछ शांति
प्राप्त सकेंगे।
(नदी किनारे जाने के इच्छुक बालक यहाँ – वहाँ गंदगी के ढेर देखकर बातचीत करते
हैं।)
जोसेफ – मित्र देखो यहाँ – वहाँ प्लास्टिक का थैला/थैलियाँ और अन्य
दूसरा कचरा भी फेंका हुआ है। कहा जाता है कि स्वच्छता स्वास्थ्य के लिए
लाभकारी होती है। परन्तु हम शिक्षित होते हुए भी अनपढ़ों की तरह आचरण करते हैं
इस प्रकार …….
वैभव – हम घरों को तो प्रतिदिन साफ़ करते हैं किन्तु किसलिए अपने पर्यावरण की
स्वच्छता की और ध्यान नहीं दिया जाता है।
विनय – देखो – देखो ऊपर से अभी भी मार्ग में कूड़ा-करकट डाला जा रहा है।
(बुलाकर के) महोदय, कृपा करें मार्ग में ऐसे कूड़े को मत फैलाओ, ये तो हमेशा
ही अशोभनीय कार्य है। अर्थात रास्ते में कूड़ा – करकट फैंकना सही बात
नहीं है। हमारे जैसे बालकों को आप जैसी महिलाएँ द्वारा इस प्रकार संस्कार दिए
जायेंगे। अर्थात बड़ी महिलाओं द्वारा छोटे बच्चों प्रकार के
संस्कार नहीं जाने चाहिए।
रोजलिन – हाँ पुत्र ! बिल्कुल सही कह रहे हो। माफ़ कर दीजिये। अभी आती
हूँ।
(रोजलिन आ कर बालकों के साथ अपने द्वारा फेंका गया कचरे को एक साथ इकठ्ठा
करके कूड़ेदान में डालती है।
शब्दार्थ- अवकर-कूड़ा।
प्रक्षिप्तम्-फेंक दिया।
आचरामः-आचरण करते हैं।
दीयते-दिया जाता है।
उपरितः-ऊपर से।
भ्रमद्भ्यः -भ्रमण करते हुए। क
कत्यम्-कार्य।
क्षम्यताम्-क्षमा करिए।
अवगच्छामि-जानती हूँ।
कण्डोले-टोकरी में।
(घ) बालाः – एवमेव जागरूकतया एव प्रधानमन्त्रिमहोदयानां स्वच्छताऽभियानमपि
गतिं प्राप्स्यति।
विनयः – पश्य पश्य तत्र धेनुः शाकफलानामावरणैः सह प्लास्टिकस्यूतमपि
खादति। यथाकथञ्चित् निवारणीया एषा। (मार्गे कदलीफलविक्रेतारं दृष्ट्वा बालाः
कदलीफलानि क्रीत्वा धेनुमाह्वयन्ति भोजयन्ति च, मार्गात् प्लास्टिकस्यूतानि
चापसार्य पिहिते अवकरकण्डोले क्षिपन्ति)
परमिन्दर् – प्लास्टिकस्य मृत्तिकायां लयाभवात् अस्माकं पर्यावरणस्य कृते
महती क्षतिः भवति। पूर्वं तु कार्पासेन, चर्मणा, लौहेन, लाक्षया,
मृत्तिकया, काष्ठेन वा निर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते स्म। अधुना
तत्स्थाने प्लास्टिकनिर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते।
सरलार्थ-
बालक – इस प्रकार जागरूकता से ही प्रधानमंत्री महोदय का स्वच्छता अभियान भी गति
प्राप्त करेगा।
हम सभी के सहयोग से स्वच्छता अभियान सफल हो पायेगा।
विनय – देखो देखो वहाँ जो गाय है सब्जियों और फलों के छिलकों के साथ प्लास्टिक
की थैलियाँ भी खा रही हैं। इसको किसी भी तरह रोकना चाहिए।
(मार्ग में केले बेचने वाले को देखकर बच्चे केले खरीद कर गाय को बुलाते है और
खिलते है। रास्ते से प्लास्टिक की थैलियों को हटाकर ढके हुए कूड़ेदान में डालते
है।)
परमिंदर – प्लास्टिक जो मिटटी में नष्ट नहीं होने के कारण हमारे पर्यावरण की
बहुत अधिक हानि होती है। पहले तो कपास से, चमड़े से, लोहे से, लाख से, मिटटी से
तथा काठ से बानी हुई ही वस्तुएँ प्राप्त होती थी। अब उसके स्थान पर
प्लास्टिक निर्मित वस्तुएँ ही प्राप्त होती हैं।
शब्दार्थ-
प्राप्स्यति-प्राप्त करेगा।
आवरणैः-छिलकों।
यथाकथञ्चित्-जैसे-तैसे।
निवारणीया-हटाना चाहिए।
कदली-केला।
अपसार्य-हटाकर।
पिहित-ढके हुए।
(ङ) वैभवः – आम् घटिपट्टिका, अन्यानि बहुविधानि पात्राणि, कलमेत्यादीनि
सर्वाणि नु प्लास्टिकनिर्मितानि भवन्ति।
जोसैफः – आम् अस्माभिः पित्रोः शिक्षकाणां सहयोगेन प्लास्टिकस्य
विविधपक्षाः विचारणीयाः। पर्यावरणेन सह पशवः अपि रक्षणीयाः। (एवमेवालपन्तः
सर्वे नदीतीरं प्राप्ताः, नदीजले निमज्जिताः भवन्ति गायन्ति च
सुपर्यावरणेनास्ति जगतः सुस्थितिः सखे।
जगति जायमानानां सम्भवः सम्भवो भुवि॥5॥
सर्वे – अतीवानन्दप्रदोऽयं जलविहारः।
सरलार्थ-
हाँ घड़ी का पट्टा और अन्य प्रकार के बर्तन, पेन/कलम आदि सब कुछ ही तो प्लास्टिक
से बना हुआ होता है।
जोसेफ – हाँ हमारे माता – पिता एवं गुरुजनों के सहयोग से प्लास्टिक के अनेक
पहलुओं पर विचार करना चाहिए। पर्यावरण के साथ पशुओं की भी रक्षा करनी चाहिए।
(इस प्रकार बातचीत करते हुए सभी नदी के किनारे पहुँच गए और नदी के जल में स्नान
किया तथा गाते हैं –
स्वच्छ पर्यावरण के द्वारा ही जगत की सुंदर स्थिति है। संसार में उत्पन्न
होने वालों की उत्पति पृथ्वी पर ही है। सभी अत्यधिक आनंद के साथ जल विहार करते
हैं।
शब्दार्थ-
मृत्तिकायां-मिट्टी में।
क्षतिः-हानि। कार्पासेन-कपास से।
चर्मणा-चमड़े से। लाक्षया-लाख से।
काष्ठेन-काठ से। आलपन्तः-बात करते हुए।
निमज्जिताः-स्नान किया।
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